________________
[ १२३ ।
। २३ लोभ कषाय
१-१७१A. दान देकर भी प्रतिष्ठा का लोभ बढ़ाया जा
सकता है।
२-१६२. यदि लोभ ही करना है तो आत्मा को पवित्रता के
विकास का लोभ करो।
३-२१२. निर्लोभता को परीक्षा रत्नत्रय के धारक व उपदेशक धर्मात्माओं व संस्थाओं की सेवा के समय होती है।
ॐ ॐ ४-४६८. इस जगत के पथ में विविध प्रलोभन के गर्त है
उनसे बचकर रहो अन्यथा सांसारिक यातनाओं के सदन में ही समय बिताना पड़ेगा।
卐 ॐ ॥ ५-७४७. लोभी के नाक नहीं अर्थात् लोभी पुरुष के स्वाभि
मान या आत्मगौरव नहीं होता, अन्याय का मूल कारण प्रायः लोभ है।
卐 ॐ ॐ