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पवित्रता नहीं आ सकती ।
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६ - ७८४, जिनके स्वपरानुग्राही चिन्तवन व ऐसा ही वचन व ऐसी ही चेष्टा होती है वे सरल योगी महात्मा धन्य हैं, उनसे किसी का हित नहीं होता और वे अपने शांति पथ में बढ़ते जाते हैं ।
७-३७८०, सरलता को वाले कर सकते हैं ।
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परीक्षा कुटिलों से अनन्य रहने
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८- ७६८. माया किसी पदार्थ या परिस्थिति के स्नेह बिना नहीं होती सो सोच तो सही जगत का कौन सा पदार्थ तेरा हितकर है ? व सहज स्वभाव (जिसमें माया का अभाव है) के अतिरिक्त कौनसी स्थिति सुखद है ? फिर किस लिये आत्मा को कुटिल बनाया जावे | फफ
2-७६६, मांया एक बुरी शल्य है; इसके रहते हुए न व्रत है न शांति है, असार वैभव मिलो या न मिलो,... माया का बर्ताव उचित नहीं है; अपने पर करुणा करो | 5 ॐ 卐