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। १०२ ] ११-४८६. लोग, व्यक्तिविशेष के आदर में भी धर्म का ही
आदर करते हैं; यदि कोई व्यक्ति माने कि मेरा आदर है तब वही ठगाया गया, पतित हुश्रा दुखी हुआ, दुखों का बीज बो चुका, लोगों को कोई हानि नहीं हुई, उन्हों ने शुभोपयोग का लाभ ही उठाया, घात तो उसी व्यक्ति का हुआ जिसने भ्रम किया।
१२-५५८. तुम तो सुखी ही हो, भ्रम से दुखी मानतेइसका इलाज कौन करे ? अरे-अपने चतुष्टय से अपना
और पर के चतुष्टय से पर का स्वरूप समझ लो और मान लो, फिर कभी उस प्रतीति से च्युत मत होओ तब फिर कोई आकुलता नहीं, सारा गोरखधंधा सुलझ कर अलग हो जायगा।
॥ ॐ ॥ १३-७०४. पर्यायबुद्धि दुःख का मूल है, अनेक दुर्गतियों
में जीव ने कठिन कठिन क्लेश सहे परन्तु जिस अवस्था में जो भी दुःख होता है उसे ही पहाड़ बना देता है; तथा अनेक भवों में अनेक वैभव पाकर छोड़े या छोड़ना पड़े फिर भी जो वैभव पोया उसे ही प्राण समझ बैठता