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[ १०१ ] --२८३. जो अपराध करने के बाद भी अपराध नहीं समझ
पाते, वे महान् मोह मद के मतवाले हैं, परन्तु वे भी निन्द्य हैं, जो सतत आत्मा को समझते हुए भी अपराधी बन जाते हैं।
२-३१६. जैसे धनी पुरुष पास रक्खे हुए स्वर्ण में बड़ाभाव सुनने के बाद घटता भाव सुनने पर कुछ खर्च खराबी न होने पर भी दुःखी होता है; उसी प्रकार वास्तविक वैराग्य शून्य ज्ञानी व त्यागी पुरुप, प्राप्त ज्ञान व त्याग में बड़े सन्मान की स्वीकारता कर चुकने के बाद सन्मान न होने पर, किसी के द्वारा कुछ हानि व क्लेश नहीं दिये जाने पर भी दुःखी होता है। अस्तु । उस के दुख में उसकी ही भूल मूल है।
9 ॐ म १०-४३५. वीतराग स्वसवेदन ज्ञान का अभाव अज्ञान है इस से सिद्ध है -कि ये सब शुभाशुभ करतूतें अज्ञान हैं, उन करतूतों से अपने को बड़ा समझना महती मूर्खता है, वस्तुतः जिसमें बड़प्पन है उस दशा में बड़ा मानने का भाव ही नहीं उठता, अतः बड़प्पन का परिणाम ही पागलपन है।
ॐ ॐ ज