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१६ विषय सेवा
१-६५. भोगासक्त मनुष्य सप्तम नरक के नारकी से भी पतित हैं, नारकी तो सम्यक्त्व उत्पन्न कर सकता परन्तु भोगासक्त मनुष्य नहीं।
२-८०. प्रभो ! जब मैं विषयों के साधक पदार्थ में मग्न होऊँ तब मेरे विपदाकारक किन्तु दुर्भावविरुद्ध पाप का उदय
आजावे जिससे मैं विपदा में फंसकर आपका स्मरण करता हुआ दुर्ध्यान से बच जाऊ ।
॥ ॐ 卐 ३-८१. केवल दूसरे का अनिष्ट विचारना या करना पाप व
अशुभोपयोग नहीं है। अर्थात् वह तो है ही, किन्तु विषयसाधन में मग्न होना भी पाप व अशुभोपयोग है।
४-२३२. उपभोग तो निर्जरा के लिये ही होता क्योंकि कर्म
के वियुक्त हो रहे बिना या सविपाक निर्जरा हुए विना या उदय आये विना, उपभोग नहीं होता परन्तु उपभोग के