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[ ८७ ] २३-५५१. संसारी सर्व जीव के क्रोध मान भंय आदि होता
है, कोई बनाकर क्रोधादि नहीं करता, अतः ये कपाय होते हैं, कोई करते नहीं है (यह एक दृष्टि है) अतः जो ये होते हैं वे तेरी असावधानी से | आत्मस्वरूप को मँभालो। कपाय तो तुम बनाकर करते ही नहीं, होने का और रोक दो फिर तू कृतकृत्य है।
ॐ ॐ ॐ २४-६१५. पर पदार्थ के सुधार विगाड़ करने के लिये हठ पकड़ जाने के बराबर मूर्खता और कोई नहीं है, सारे क्लेश इस हठ से उत्पन्न होते हैं । आत्मशुद्धि पर अधिक लक्ष्य करो, तुम्हारे क्षमादि भाव ही तुम्हारे रक्षक हैं और कोई रक्षा करने वाले नहीं हैं।
२६-६१८. ज्ञान होता है इतना ही तो कर्तापन है और ज्ञान होता है इतना ही भोक्तापन है क्योंकि ज्ञान के सिवाय
आत्मा किसे करता और किसे भोगता है ? संसार अवस्था में जो सुख दुख होते हैं वे भी ज्ञान के ही मार्फत अपना सर्वस्त्र भेंट कर पाते हैं, अतः सुनिश्चित हुआ कि मैंने ज्ञान के सिवाय न कुछ किया, न कुछ भोगा, न कुछ कर रहा हूं, न कुछ भोग रहा हूं, न कुछ कर हो सकूगा,