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जावे।।
ॐ ॐ फ
४-३४. स्वयं पुण्य बनते हुए भी जब तक गति नाम का उदय है तब तक पुण्य का बंध या उदय सच्च रहेगा हो परन्तु तुम उसकी इच्छा न करो, पुण्य की इच्छा भी पाप की एक जाति है ।
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५- ६३. रागद्वेष मोह का निमित्त - आश्रय -- श्राधारविषय पर पदार्थ है, यदि किसी से कहा जाय कि तुम
रागद्व ेष मोह करो किन्तु शुद्धात्मा के सिवाय अन्य पदार्थ में मत करो तो वह कर ही वैसे सकता है ?
卐淡出
६-६४. अपने परिणाम से अन्य जीव का दुःख, सुख, बंधन, मोक्ष आदि रूप परिणमन नहीं होता, वह तो उन्हीं के
सुराग वीतराग परिणाम से होता अतः यह अहङ्कार
मिथ्या है जो मैंने दूसरे को दुखीं किया, सुखी किया, बांधा, छुड़ाया आदि ।
फॐ फ्र ७- १५४. जगत् में एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता नहीं, एक परमाणु दूसरे परमाणु का कर्ता नहीं। किसी