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________________ २८८ कुंदकुंद-भारती असुहीवीहत्थेहि य, कलिमलबहुला हि गब्भवसहीहि। वसिओसि चिरं कालं, अणेयजणणीण मुणिपवर।।१७।। हे मुनिप्रवर! तूने अनेक माताओंके अशुद्ध, घृणित और पापरूप मलसे मलिन गर्भवसतियोंमें चिरकालतक निवास किया है।।१७।। पीओसि थणच्छीरं, अणंतजम्मतराई जणणीणं। अण्णण्णाण महाजस, सायरसलिला दु अहिययरं।।१८।। हे महायशके धारक! तूने अनंत जन्मोंमें अन्य अन्य माताओंके स्तनका इतना अधिक दूध पिया है कि वह इकट्ठा किया जानेपर समुद्रके जलसे भी अधिक होगा।।१८।। तुह मरणे दुक्खेण, अण्णण्णाणं अणेयजणणीणं। रुण्णाण णयणणीरं, सायरसलिला दु अहिययरं ।।१९।। हे जीव! तुम्हारे मरनेपर दुःखसे रोनेवाली भिन्न भिन्न अनेक माताओंके आँसू समुद्रके जलसे भी अधिक होंगे।।१९।। भवसायरे अणंते, छिण्णुज्झियकेसणहरणालट्ठी। पुंजइ जइ कोवि जए, हवदि य गिरिसमधिया रासी।।२०।। हे जीव! इस अनंत संसारसागरमें तुम्हारे कटे और छोड़े हुए केश, नख, बाल और हड्डीको यदि कोई देव इकट्ठा करे तो उसकी राशि मेरुपर्वतसे भी ऊँची हो जाय।।२०।। जलथलसिहिपवणंवरगिरिसरिदरितरुवणाई सव्वत्तो। वसिओ सि चिरं कालं, तिहुवणमझे अणप्पवसो।।२१।। हे जीव! तूने पराधीन होकर तीन लोकके बीच जल, स्थल, अग्नि, वायु, आकाश, पर्वत, नदी, गुफा, वृक्ष, वन आदि सभी स्थानोंमें चिरकालतक निवास किया है।।२१ ।। गसियाई पुग्गलाई, भुवणोदरवत्तियाई सव्वाइं। पत्तोसि तो ण तित्ति, पुणरूवं ताइं भुंजंतो।।२२।। हे जीव! तूने लोकके मध्यमें स्थित समस्त पुद्गलोंका भक्षण किया तथा उन्हें बार-बार भोगते हुए भी तृप्ति नहीं हुई।।२२।। तिहुयणसलिलं सयलं, पीयं तिण्हाये पीडिएण तुमे। .. तो वि ण तिण्हाच्छेओ, जाओ चिंतेह भवमहणं ।।२३।। हे जीव! तूने प्याससे पीड़ित होकर तीन लोकका समस्त जल पी लिया तो भी तेरी प्यासका अंत
SR No.009898
Book TitleAshta Pahud
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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