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ते ज रीते, पं. लालचन्द्र भ. गांधी तेमने सान्तू महेताना समकालीन माने छे अने प्रा. सी. डी. दलाल तेमने कर्णना समयना माने छे ते पण सम्भवित जणातुं नथी. कारण के, प्रशस्तिकारोए, ते भद्रेश्वरसूरिजीए आवी कोई रचना करी छे तेवू, क्यांय निर्देश्युं नथी अने ते सिवाय अन्य पण कोई प्रमाण ते माटे नथी.
वादी देवसूरिना शिष्य भद्रेश्वरसूरिए कहावलीनी रचना करी होय तेवू पं. दलसुख मालवणियानुं अनुमान पण योग्य जणातुं नथी. कारण के आख्यानकमणिकोशवृत्तिना रचयिता आम्रदेवसूरिए पोताना ग्रन्थमां केटलीक कथाओ कहावलीमांथी ज यथातथ लीधी होय तेवू स्पष्ट जणाय छे अने वळी, कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्ये पण पोताना त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितमहाकाव्यमां घणां ठेकाणे कहावलीनो आधार लीधो होय तेवू जणाय छे. अने प्रस्तुत (वादी देवसूरिशिष्य) भद्रेश्वरसूरिनो समय ऐतिहासिक प्रमाणो द्वारा आम्रदेवसूरि पछीनो निश्चित छ, साथे हेमचन्द्राचार्य पण तेमना गुरु वादी देवसूरिना समकालीन छे, तेथी तेमनो कहावलीकार तरीकेनो सम्भव जणातो नथी.
हवे, पं. दलसुख मालवणिया जणावे छे तेम, कहावलीकारे पोताना ग्रन्थमा तरंगवईकहा, वसुदेवहिण्डी, पउमचरिय, तित्थोगालीपइण्णय, आवस्सयचुण्णी, महानिशीथसूत्र व. पूर्व कृतिओनो उपयोग अवश्य कर्यो छे; अने पं. अमृतलाल भोजक जणावे छे तेम चउप्पन्नमहापुरिसचरियं-ना कथासन्दर्भो अने विबुधानन्दनाटक पण कहावलीमां अवतारायां छे. आ बधी ज रचनाओ विक्रमना बीजा सैकाथी मांडी दशमा सैकाना प्रथम चरण सुधीमां रचायेली छे, अने ते पछीनी एक पण रचनाना सन्दर्भो कहावलीमां जोवा मळता नथी. माटे आ समग्र चर्चाना तारणरूपे सामान्यथी एवं कही शकाय के कहावलीकार भद्रेश्वरसूरि विक्रमना १०मा शतकमां थया होवा जोईए अने कहावलीनी रचना तेमणे १०मा शतकना उत्तरार्धमां करी होवी जोईए. विशेष निष्कर्ष अने निश्चय तो अधिकारी विद्वानवर्ग करी शके. ५. मनोगतं किञ्चित्
ई. १९३२मां जर्मन विद्वान् डॉ. हर्मन जेकोबीए कहावली ग्रन्थ विशे विद्वज्जगत्तुं ध्यान दोर्यु हतुं. ते अरसाथी आगमप्रभाकर पू. मुनिश्रीपुण्यविजयजी महाराज तथा अन्य घणा वरिष्ठ विद्वज्जनोनी कहावली ग्रन्थ, सम्पादन-प्रकाशन सत्वरे थाय एवी महेच्छा हती परन्तु कोई ने कोई कारणोसर विद्वानोनी ए महेच्छाने पूर्ण थतां ८० वर्षों वीती गयां (१९३२-२०१२). आजे आ प्राकृतभाषामय कथाग्रन्थना प्रथम परिच्छेदनो प्रथम खण्ड प्रकाशित थई रह्यो छे ते बदल अत्यन्त आनन्द अने प्रसन्नतानी लागणी अनुभवं छं.
आ कार्य करवा माटेना भाषाज्ञान - इतिहासज्ञान व. कोई पण योग्यता अने सज्जता मारामां नहि होवा छतां मारा पू. गुरुभगवन्त आ. श्रीविजयशीलचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजे मने आ कार्य सोंपी संशोधन-सम्पादनना अफाट क्षेत्रमा मारो प्रवेश कराव्यो छे अने सम्पादनने उपयोगी तमाम पुस्तकादि सामग्री पूरी पाडी छे, साथे ज हुं ज्यां पण अटकुं । मुंझाउं त्यां अत्यन्त प्रेम तथा वात्सल्यथी मार्गदर्शन करी सतत हूंफ आपी छे ते बदल हुं सदैव तेमनो ऋणी छु अने तेमर्नु आq ऋण सदा मुझ पर चडतुं रहे तेम इच्छु छु.
साथे, मारा सहवर्ती विद्वान मुनिभगवंतोए खास तो मारा नाना गुरुभ्राता मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजीए आ कार्यमां दरेक प्रकारनी सहाय करी छे अने मने वारंवार प्रेरणा-प्रोत्साहन आप्यां छे, ते सर्वेनो पण आ अवसरे मैत्रीपूर्ण हकदावे ऋणस्वीकार करुं छु.
तके हुं खास तो कृतज्ञतापूर्वक आभारी छु डॉ. रमणीकभाई शाहनो, के जेओ पोते आ ग्रन्थ- सम्पादन करवा माटे अधिकारी होवा छतां, वि.सं. २०६३मां अमदावाद - देवकीनन्दन (नारणपुरा) संघमां चातुर्मास दरम्यान पू. गुरुभगवन्तने मळवा आव्या त्यारे पू. गुरुभगवन्ते कहावलीग्रन्थनां सम्पादन-प्रकाशनादि करवा माटे तेनी सामग्रीनी