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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि । निये दौड़ता है उसको मङ्गल कहते हैं, अथवा जिसके द्वारा वा जिससे टुटूष्ट (९) दूर चला जाता है उस को मङ्गल कहते हैं, तात्पर्य यह है कि जिससे अभिप्रेत (२) अर्थ की सिद्धि होती है उसका नाम मडल है तथा यह माती हुई बात है कि मनुष्य के अभिप्रेत अर्थ की सिद्धि तब ही हो सकती है जब कि सब प्राणी उसके अनकल हों तथा सर्व प्राणियोंके अनकूल होने को ही वशित्त्व अर्थात् वशमें होना कहते हैं, अतः “मंगलाणं” इस पद के जप और ध्यानसे वशित्त्व सिद्धि की प्राप्ति होती है।।
(ग )-शकुन शास्त्रकारोंने (३) शिखी (४), हय (५), गज (६), रासभ (७), पिक (८) और कपोत (९) आदि जन्तुओंके वामभाग (१०) से निर्गम (१९) को तथा किन्हीं प्राणियोंके दक्षिण भागसे निर्गम को जो मङ्गलरूप बतलाया है उसका भी तात्पर्य यही होता है कि उस प्रकारके निर्गम से आनल्य (१२) के द्वारा उनका वशित्त्व प्रकट होता है अर्थात् उस प्रकारके निगमके द्वारा वे इस बात को सूचित करते हैं कि हम सब तुम्हारे अनल हैं; अतः तुम्हारा कार्य सिद्ध होगा, ( इसी प्रकारसे सब शकुनों के विषय में जान लेना चाहिये ), तात्पर्य यह है कि- लौकिक व्यवहा के द्वारा भी महल शब्द वशित्त्व का द्योतक (१३) माना जाता है, इसलिये जान लेना चाहिये कि "मंगलाणं” इस पदके जप और ध्यानसे वशित्त्व सिद्धि की प्राप्ति होती है तथा इस पदमें वशित्त्य सिद्धि सन्निविष्ट है।
(घ ) संसारमें ब्राह्मण, गाय, अग्नि, हिरण्य (१४), घृत (१५), आदित्य (१६), जल और राजा, ये आठ मङ्गल माने जाते हैं, तात्पर्य यह है कि म. इलवाच्य (१७) पाठ पदार्थो के होनेसे मङ्गल शब्द प्रगट संख्या का द्योतक है ( जैसे कि वाणों की पाच संख्या होनेसे वाण शब्द से पांच का ग्रहण होता है तथा नेत्रों की दो संख्या होनेसे नेत्र शब्द से दोका ग्रहण होता है ) तथा यहां पर वह अष्टम संख्या विशिष्ट (१८) सिद्धि ( वशित्त्व ) का बोधक है, उस मंगल अर्थात् पाठवीं सिद्धि ( वशित्त्व ) को जिसमें "अ"
१-दुर्भाग्य, दुष्कृत ॥२-अभीष्ट ॥ ३-शकुन शास्त्रके बतानेवालों ४-मोर ॥ ५-घोड़ा ॥ ६-हाथी ॥ ७-गधा ॥ ८-कोयल ॥ १-कबूतर ॥ १०-बाई ओर ॥ ११ निकलना ॥१२-अनुकूलता॥ १३-ज्ञापक सूचक ॥ १४-सुवर्ण ॥ १५-घी ॥१६-सूर्य १७-मङ्गल शब्द से कहने (जानने ) योग्य ॥ १८-आठवीं संख्यासे युक्त ॥
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