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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ ष्टान्त की संघटना [१] की है, अर्थात् हद के गुणों को बतला कर भाचार्य में भी तत्स्थानीय [२] गुणों का उल्लेख किया है, इसी विषय में यह कहा है कि-"पाँच प्रकार के प्राचार से युक्त, आठ प्रकार की प्राचार्यसम्पदों से यक्त तथा छत्तीस गुणों को आधार वह प्रथम भंग पतित आचार्य हद के समान होता है, जो कि निर्मन ज्ञान से परिपूर्ण है तथा संसक्त आदि दोषों से रहित सुखविहार से क्षेत्र में स्थिति करता है,” इत्यादि। ___इसी प्रसंग में विकृतिकारने प्राचार्य की प्राट सम्पद् बतलाई हैं; जिन का उल्लेख ऊपर किया गया है, अतः उक्त वाक्य में सम्पद नाम मुख्य सामग्री वा मुख्य साधन का है, अर्थात् प्राचार, श्रत, शरीर, वचन, वाचना मति, प्रयोगमति तथा समुह परिज्ञा, ये आठ प्राचार्य की सम्पद [ मुख्य सामग्री वा मुख्य साधम ] हैं।
इस कथन से स्पष्ट हो गया कि-सम्पद नाम वाचना का नहीं है अर्थात् सम्पद और वाचना, ये पर्याय वाचक [३] शब्द नहीं हैं।
किञ्च-वाचना नाम उपदेश अथवा अध्यापन का है, अतएव उक्त वाक्य में प्राचार्य की पाठ सम्पदों में से वाचना को भी एक सम्पद कहा गया है, परन्तु देश विशेष में लोग भ्रमवशात् दैनिक पाठ [४] वा विश्रान्त [१] पाठ को वाचना समझने लगे हैं, अथवा उन्हों ने वाक्यार्थ योजना का नाम भी नमवशात् वाचना समझ रक्खा है और वाचना [उपदेशदान अथवा अध्यापन | जो कि प्राचार्य की प्राठ सम्पदों में से एक सम्पद कही गई है उस सम्पद् शब्द को वाचना [ एक वाक्यार्थ योजना ] का पर्याय मानकर [६] उसी वाक्यार्थ योजना की आकांक्षा [७] से उक्त मन्त्र में आठ सम्पद मा. नली हैं; यह उन को केवल भ्रममात्र है ।
(प्रश्न ) कृपया अपने मन्तव्य (c) में कुछ अन्य हेतुओं का उल्लेख कीजिये कि जिसमें ठीक रीतिसे हमारी समझमें यह बात आ जावे कि वा. चना ( एक वाक्यार्थ योजना) का नाम सम्पद् नहीं है तथा सम्पद शब्द को १-योजना, सङ्गति ॥ २-उस के स्थान में ॥३-एकार्थवाचक ॥४-मारवाड़ देशमें प्रायः लोग दैनिक पाठ (प्रतिदिन की संथा अर्थात् पाठ ) को वाचना कहा करते हैं ॥ ५विश्रान्ति से युक्त पाठ ॥ ६-अपनी इच्छा के अनुसार वाचना नाम एक वाक्यार्थ योजना का मान कर ॥ ७-अभिलाषा ॥ ८-मत ॥
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