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अथ षष्ठः परिच्छेदः ।
श्रीमन्त्रराज ( नवकारमन्त्र ) में सन्निविष्ट पाठ सिद्धियों के
विषय में विचार ।
( प्रश्न )-परमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र कर्ता श्रीजिनकीर्ति सूरिजी महाराज ने प्रथम गाथा की स्वोपज्ञवृत्ति के प्रारम्भ में लिखा है कि-"परमेष्ठिनोह. दादयस्तेषां नमस्कारः अतस्कन्धरूपो नवपदाष्टसम्पदष्टषष्टयक्षरमयो महामन्त्रः” अर्थात् "अर्हत् श्रादि (१) परमेष्ठियों का स्कन्धरूप जो नमस्कार है वह नौपद, पाठ सम्पद् तथा अड़सठ अक्षरों से यक्त महामन्त्र है" इस विषयमें प्रष्टव्य (२) यह है कि इस महामन्त्र में पाठ सम्पद् कौनसी हैं ?
(उत्तर)-इस परमेष्ठि नमस्कार महामन्त्र की व्याख्या करने वाले अन्य महानुभावों ने जो इस महामन्त्र में पाठ सम्पद् मानी हैं, प्रथम उन का निरूपण (३) किया जाता है। तदनन्तर (४) इस विषयमें अपना मन्तव्य (५) प्रकट किया जावेगाः
__ उक्त महानभावों ने यति ( पाठच्छेद ) अथवा वाचना ( सहयुक्त वा क्यार्थ योजना ) (६) का नाम सम्पद मानकर नीचे लिखे प्रकार से आठ स. म्पद् मानी हैं तद्यथाः
१-णमो अरिहन्ताणं ॥२-णमो सिद्धाणं ॥ ३-णमो पायरियाणं ॥ ४णमो उवज्झायाणं ॥५-गमो लोए सब्बसाहूणं ॥ ६-एसो पञ्चणमोकारो ॥ -सव्वपावप्पणासणो ॥ ८-मङ्गलाणं च सव्वेसिं ॥ -पढमं हवइ मङ्गलम् ॥
तात्पर्य यह है कि-प्रथम सात पदों की अलग २ सम्पद् ( यति वा(७)
१-आदि शब्दसे सिद्ध आदिको जाननाचाहिये ॥ २-पूछने योग्य (विषय ) ॥ ३-वर्णन, कथन ॥४-उस के पश्चात् ॥५-मत, सम्मति ॥ ६-मिश्रित वाक्य के अर्थ की सङ्गति ॥ ७-यद्यपि सम्पद् नाम वाचना का तथा वाचना नाम सहयक्त वाक्यार्थ योजना का नहीं है (इस विषय में आगे लिखा जावेगा), किन्तु यहां पर तो उनके मन्तव्य के अनुसार ऐसा लिखा गया है ।
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