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पञ्चम परिच्छेद ॥
( १७३)
३३ अक्षर होजावें, क्योंकि नमस्कारावलिका ग्रन्थ में कहा है कि "किसी कार्य विशेष के उपस्थित होने पर जब चूलिका के ही चारों पदों का (१) पान करना हो तब बत्तीस दल [२] का कमल बनाकर एक २ अक्षर को एक २ पांखड़ी में स्थापित कर देना चाहिये तथा तेंतीसवें अक्षरको मश्य कर्णिका(३) में स्थापित करके ध्यान करना चाहिये अतः यदि “होइ मंगलं” ऐसा पाठ माना जावे तो चारों पदों में ३२ ही अक्षर रह जायें उन ३२ अक्षरों से ३२ पांखड़ियों को पूर्ण कर देने से मध्य की कर्णिका खाली ही रह जावे, अतः 'हवइ मंगलं, ऐमा पाठ मान कर पिछले चारों पदों में ३३ अक्षर ही मानने चाहिये।
( प्रश्न ) अनेक ग्रन्थों में लिखा है कि पञ्चपरमेष्ठियों को नमस्कार करके उनके एक सौ पाठ गुणरूप मन्त्र का जप करना चाहिये, वे एक सौ आठ गुण कौन से हैं तथा पृथक् २ पांचों के कितने गुण हैं। . ( उत्तर ) देखो ! बारस गुण अरिहन्ता, सिद्धा अट्ठव सूरि छत्तीसं ॥ उवझाया पणवीसं, साहू सत बीस अट्ठमयं ॥१॥ अर्थात् अरिहन्त के बा. रह गुण हैं, सिद्धि के पाठ गुण हैं, प्राचार्य के छत्तीस गुण हैं, उपाध्याय के पच्चीस गुण हैं तथा साधके सत्ताईस गुण हैं, इन सबको एकत्रित (४) करने से एक सौ आठ गुण होते हैं।
(प्रश्न ) अरिहन्त के बारह गुण कौन २ से हैं ?
( उत्तर ) आठ प्राति हार्य (५) तथा चार मूलातिशय (६) इस प्रकार से अरिहन्त के बारह गुण हैं । (७)
(प्रश्न ) कृपया अाठ प्रातिहार्य तथा चार मूलातिशय रूप बारह गुणों का वर्णन कीजिये?
(उत्तर) उक्त गुणों का विषय बहुत विस्तृत (5) है तथा अन्य ग्रन्थों में उसका विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। अतः यहां पर उक्त विषयका अत्यन्त संक्षेप से वर्णन किया जाता है:
१-पिछले चारों पदों का ॥२पखड़ी॥३-बीच की कर्णिका ( डंठल ) ॥४-इकट्ठा ॥५-भगगनके जो सहाचारी हैं उनको प्रातिहार्य कहते हैं, अथवा इन्द्रके आज्ञाकारी देवों कर्माके को प्रातिहार्य कहते हैं । ६-मूलरूप अतिशय ( उत्कृष्टता) ॥६-अर्थात् आठ प्रातिहार्य तथा चार मूलातिशय, ये दोनों मिलकर अरिहन्त के बारह गुण हैं ॥७-विस्तार युक्त ॥
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