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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ अथवा-शासनके प्रवर्तक होकर सिद्धि रूपसे जो मङ्गलवका अनुभव करते हैं उनको मिद्ध कहते हैं। ___ अथवा-जो नित्य अपर्यवसित अनन्त स्थिति को प्राप्त होते हैं उनको सिद्ध कहते हैं।
अथवा-जिनसे भव्य जीवों को गुणसमूह की प्राप्ति होती है उनको सिद्ध कहते हैं (१) ।
( प्रश्न -उक्त लक्षणों से युक्त सिद्धोंको नमस्कार करने का क्या कारण है।
( उत्तर ) अविनाशी तथा अनन्त ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य रूप चार गुणोंके उत्पत्ति स्थान होनेसे उक्त गुणोंसे युक्त होनेके कारण अपने विषयमें अतिशय प्रमोद को उत्पन्न कर अन्य भव्य जीवों के लिये प्रानन्द उत्पादन के कारण होने से वे अत्यन्त उपकारी हैं, अतः उन को नमस्कार करना उचित है।
( प्रश्न ) सिद्धों का ध्यान किसके समान तथा किस रूपमें करना चाहिये ? - ( उत्तर ) सिद्धों का ध्यान उदित होते हुए सूर्य के समान रक्तवर्ण में करना चाहिये।
(प्रश्न ) “णमो पायरियाणं” इस तीसरे पद से प्राचार्यो को नमस्कार किया गया है; उन ( प्राचार्यों ) का क्या स्वरूप है अर्थात् प्राचार्य किन को कहते हैं ?
(उत्तर)-जो मर्यादा पूर्वक अर्थात् अर्थात् विनय पूर्वक जिन शासन के अर्थ का सेवन अर्थात् उपदेश करते हैं उन को प्राचार्य कहते हैं, (२) अथवा उपदेश के ग्रहण करने की इच्छा रखने वाले जिन का सेवन करते हैं उनको प्राचार्य कहते हैं।
१-कहा भी है कि-"ध्मातं सितं येन पुराण कर्म यो वा गतो निवृतिसौध मूनि ॥ ख्यातोऽनुशास्ता परि निष्ठितार्थः यः सोऽस्तु सिद्धः कृतमङ्गलो मे ॥१॥ अर्थात् जिसने बंधे हुए प्राचीन कर्म को दग्ध कर दिया है, जो मुक्ति रूप महलके शिरोभागमें प्राप्त हो गया है जो शास्त्र का वक्ता और अनुशासन कर्ता है तथा जिसके सर्व कार्य परिनिष्ठित हो गये हैं वह सिद्ध मेरे लिये मङ्गलकारी हो ॥
२--कहा भी है कि “सुत्तत्थ विऊलक्खण, जुत्तो गच्छस्स मेढिभूओ ॥ गणतत्ति विप्पमुक्को, अत्थं वाएह आयरिओ ॥ १॥ अर्थात् सूत्र और अर्थ, इन दोनों के लक्षणोंसे युक्त तथा गच्छ का नायक स्वरूप आचार्य गच्छ की तप्ति ( रागद्वेष की आकुलता) से रहित होकर अर्थ की वाचना करता है ॥१॥
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