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चतुर्थ परिच्छेद ।
(१४३) १-आदि के पांच पदों का पञ्च परमेष्ठि मुद्रा के द्वारा जाप करने पर सब क्षुद्र उपद्रवों का नाश तथा कर्मों का क्षय होता है। उसी प्रकार के उत्तम वस्त्र को ओढ़ना चाहिये, शरीर को स्वच्छ कर अर्थात् नहा धो कर शुद्ध वस्त्र पहन कर समता तथा श्रद्धा के साथ शुद्ध उच्चारण कर मन्त्र का जप करना चाहिये, आसन जिन प्रतिमा के समान पद्मासन होना चाहिये, अथवा जिस जिस मन्त्रविधि में जैसा २ आसन कहा गया है तदनुसार हो आसन कर बैठना चाहिये तथा जप करते समय वायें हाथ को दाहिनी बगल में रखना चाहिये, जिस प्रकार की नवकार मालिका जपने के लिये कही गयी हो उसी को लेकर नासिका के अग्रभाग में अथवा प्रतिमाछवि के सामने दृष्टि को रख कर स्थिर चित्त से जप करना चाहिये, जहां २ धूर का विधान हो वहां २ धूप देना चाहिये तथा जहां २ दीपक का विधान हो वहां २ स्वच्छ उत्तम घृत का दीपक जलाकर आगे रखना चाहिये, वशीकरण विद्या में मुख को उत्तर की ओर करके बैठना चाहिये, लाल मणका की माला को बीच की अंगुलि पर रखकर अंगूठे से फेरना चाहिये, आसन डाभ का लेना चाहिये, सफेद धोती को पहरना चाहिये तथा श्वेत अन्तरवासिये को रखकर बायें हाथ से जप करना चाहिये, लक्ष्मी प्राप्ति तथा व्यापार में लाभ प्राप्ति आदि कार्यों में पूर्व अथवा दक्षिण दिशा की ओर मुख रखना चाहिये, पद्मासन से बैठना चाहिये, लाल रंग की माला, लाल अन्तरवासिया तथा लाल रंग के ऊनी अथवा मलमल के आ. सन को लेकर दक्षिण हाथ से जप करना चाहिये, स्तम्भन कार्य में मुख को पूर्व की ओर रखना चाहिये, माला सोने की अथवा पोखराज की लेनी चाहिये, आ. सन पीले रंग का लेना चाहिये तथा माला को दाहिने हाथ से चीचली अंगुलि पर रख कर अंगूठे से फेरना चाहिये, उच्चाटन कार्य में मुख को वायव्यकोण में रखना चाहिये, हरेरंग की माला लेनी चाहिये, आसन डाभ का होना चाहिये, मन्त्र को बोलकर दाहिने हाथ की तर्जनी अंगुलि पर रखकर अंगूठे से मालाको फेरना चाहिये, शान्ति कार्य में मुख को वारुणी (पश्चिम) दिशा की ओर रखना चाहिये, मोती की अथवा सफेद रंग की माला लेनी चाहिये तथा उसे अनामिका अगुलि पर रख कर अंगूठे से फरेना चाहिये, आसन डाभका अथवा श्वेत रंगका होना चाहिये तथा श्वेत वस्त्र पहनने तथा ओढ़ने चाहिये, पौष्टिक कार्य में मुख को नैर्ऋत्य कोण में रखना चाहिये, डाभके आसनपर बैठना चाहिये, मोती की अथवा श्वेत रंगकी माला को लेकर उसे अनामिका अंगुलि पर रख कर अंगूठे से फेरना (जपना) चाहिये तथा श्वेत वस्त्रों को काम में लाना चाहिये, मन्त्र का साधन करने में
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