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अंक ३ ]
सत्यपुरोय श्रीमहावीर उत्साह, परिचय
जिन महंतु गिरिवरह मेरु, गहगणह दिवायर, जिम महंतु सु सर्ववरमणु उवहिहिं रयणायरु; जिम महंतु सुरवरह मज्झि सुरलोइ सुरेसरु,
तिम महंतु तियलोयलिउ सच्चरि जिणेसरु, उद्दव दियरह तेउ, गहवर सोमत्तणु,
पं० धणपालकृतः श्रीसत्यपुरमंडन - श्रीमहावीरउत्साहः
समासः
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गंभीर सायरह, हरवि मंदिरह थिरत्तणुः aise वीरु नं अमिर लेवि सच्चरि सुणिज्जइ, तिहुअणि तसु पडिबिंबु नत्थि जसु उप्पम दिज्जइ ॥ १२ ॥ कोरिंट, सिरिमाल, धार, आहाड, नराणजं,
अणहिलवाड, विजयकोट्टु, पुण पालित्ताणुं । पिक्खिवि ताव बहुत ठाम मणि चोज्जु पईसर,
जं अज्जवि सच्चरि वीरु लोयणिहि न दीस सहस्से व लोह तत्थु न होइ नियंतह
वयणसहस्सेहि गुणनतु निट्ठियहि थुणंतह एक जीह धणपालु भइ इक्कु जं मह नियतणु,
किं वन्न सच्चाउरि-वीरु हउं पुणु इक्काणणु. रक्ख सामि परंतु मोहु नेहुंडय तोडहि,
सम्मर्दसणि नाणु चरणु भड कोहु विहाडहि ; करि पसाउ सच्चरि वीरु जइ तुहु मणि भावइ, तर तु धणपालु जाउ जहि गयउ न आवइ.
Aho ! Shrutgyanam
॥ ११ ॥
॥ १३ ॥
॥ १४ ॥
।। १५ ।।