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जैन साहित्य संशोधक
'पुरिसा ! सचमेव सममिजाणाहि । सञ्चस्साणाए उवडिए मेहावी मारं तरह ।' " जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ, जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ ।' 'दिहं, सुर्य, मयं, विण्णायं, जं एत्थ परिकहिज्जइ । ' -निर्ग्रन्थप्रवचन
महावीरनिर्वाण संवत् २४५३ - फाल्गुण
॥ ॐ ह्रीं श्री अँह नमः ॥
श्रामं देववाचक क्षमाश्रमण कृत श्रमण भगवान् श्रीमहावीरदेवनी नान्दिक स्तुति
खंड ३ ]
जय जगजीवजोणीवियाणओ जगगुरू जगाणंदो । जगणाहो जगबन्धू जय जगप्पियामहो भयवं ॥ जयइ सुषाणं पभवो तित्थयराणं अपच्छिमो जयइ | जय गुरू लोयाणं जयइ महत्पा महावीरो ॥ भद्दं सव्वजगुज्जोयगस्स भहं जिणस्स वीरस्स । भदं सुरासुरनमंसियस्स भदं धुयरयस्स ॥
Aho ! Shrutgyanam
[ अंक १