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अंक 1
महाकवि पुष्पदन्त और उनका महापुराण नक्षत्राधीशरोचिप्रचयशुचिबरोदामकीर्त्या निकेतो, निर्णाताशेषशास्त्रानिदशपतिनुताशेषवित्पादभक्तः। भ्राता भन्यप्रजानां सततमिह भवाम्भोधिसंसारभीरुभीतिज्ञो निर्जिताक्षः प्रणयधिनयतानंदतान्नन्ननामा ॥'
x प्राधान्तदानपरितोषितवन्धवृन्दो दारिद्ररौद्रकरिकुंभविभेददक्षः। श्रीपुष्पदन्तकविकाव्यरसामितृप्तः श्रीमान्सदा जगति नंदतु नन्ननामा ॥
x गंधठवें कण्हडणंदणेण प्रायई भवाई किय थिरमणेण । महु दोसु ण दिजइ पुटवे कइउ कइवच्छराय तं सुत्त लहई ।।
x पावनिमुंभणि मुद्दाबंभाणि, उअरुप्पण्णि सामलवर्षिण । कासवगुक्ति कैसवपुत्ति, जिणपयभत्तिं धम्मासत्तिं ॥ वयसंजत्तं उत्तमसतं, वियलियसंकंत्राहिमाणेकं। पहसियतुंडं कयणा खंडं, रंजियबुहसह कयजसहरकह ॥ ओ श्रायराणहचंगउ मण्णइ, लिहा लिहावह पढइ पढावा। जो मणसावइ सो नर पावइ, विहुणियघणरय सासयसंपय ॥ जणवयनीरसि दुरियमलीमसि, कयनिंदायारे दूसहि दुहरि । पडियकवालए नरकंकालप, बहुरंकालए थइदुक्कालए॥ पवरागारि सरसाहारि, सन्हा चेला वरतंबोलइ । महु उवयारिउ पुषिणप्पेरिउ, गुणभत्तिलज एण्णमहल्लउ ॥ होउ चिराउसु वरिसउ पाउसु, तिप्पउ मेइणि धणकणदारणि । विलसउ गोविणि णबाउ कामिणि, घुम्मउ मद्दलु पसरउ मंगलु ॥ सत्ति वियंभउ दुक्ख निसुंभउ, धम्मुच्छाहि सहुनरनाहिं। सुह नंदउ पय जय परमप्पय, जय जय जिणवर जय भवभयहर। विमलु सुकेवलणाणसमुज्जलु, मह उप्पज्जउ इच्छिउ दिजउ ।
मइ अमुणंतह कव्वु कुर्णतह, जं हीणाहिउ काइवि साहिउ॥ पत्ता-तं माइ महासह देवि सरासह निहयसयलसंदेह दुह ।
__ महु खमहु भडारी तिहुयणसारी पुप्फयंत जिणवयणरुह ॥ २३ ॥ इयजसहरमहारायचरिए...............चउत्यो परिच्छेश्रो सम्मत्तो ॥ छ ॥ मंगलमस्तु । संवत् १३६० वर्षे आषाढ सुदि १३ शनौ अधेह श्रीमहाराजाधिराज श्रीसुरत्राण महमदराज्ये दुर्गमंडप पडिगनायागे वगडी नामनि प्राग्वाटवंशीय सा० भावडसंताने सा० मल्हौ पुत्र रामा भ्रार्तृ देल्हाकेन द्वाभ्यां जसोधरपुस्तिका लखिता। सा चिरं नंदतु ॥ छ । शुभमस्तु ।।
परिशिष्ट नं. ६ (आदिपुराण की प्रति लिखानेवाले की प्रशस्ति ।) पणविवि रिसहेसर विणियपणसरु लोयालोय पयासणु । वरमुत्तिरमणवरु जम्ममरणहरु कम्ममहारि विणासणु॥ मेयनयणवाणससहरमिएसुसंवच्छरेसुपच्छह गए। विक्कमरायहो सुइसेयपक्ख एवमी बुहवारे सचित्तरिक्ख ॥
गोवेगिरीणयरि णिउ डुंगरिंदै, हुउ पयपाडियसामंतर्विदु।। १ यह पद्य तीसरे पारच्छद के प्रारंभ में है। २ यह पद्य चौथे परिच्छेद के प्रारंभ का है, परन्तु बम्बई और पूने की दोनों प्रतियों में नहीं है। छपी हुई भाषावली प्रति में है । ३ यह पद्य बम्बई की प्रति में नहीं है।
४ मद-नयन-वाण-शशधर मितेसु, अर्थात् वि• संवत् १५२१ । ५ ग्वालियर-गोपाचल। ६ डूंगर सिंहराजा।
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