________________
ww j
जैन साहित्य संशाधिक
[२
I
(जैनेन्द्र के कर्त्ता ) और पाणिनिका उल्लेख और भी एक दो जगह हुआ है । गुरु, शुक्र, विशालाक्ष, परीक्षित, पराशर, भीम, भीष्म, भारद्वाज आदि नीतिशास्त्रप्रणेताओं का भी वे कई जगह स्मरण करते हैं । कौटिलीय अर्थशास्त्र से तो वे अच्छी तरह परिचित हैं ही । हमारे एक पण्डित भित्रके कथनानुसार नीतिवाक्यामृत में सौ सवा सौ के लगभग ऐसे शब्द हैं जिनका अर्थ वर्तमान कोशोंमें नहीं मिलता । अर्थशास्त्रका अध्येता ही उन्हें सम्झ सकता है । अश्वविद्या, गजैविद्या, रत्नपरीक्षा, कामशास्त्र, वैद्यक आदि विद्याओंके आचार्योंका भी उन्होंने कई प्रसंगों ने जिकर किया है । प्रजापतिप्रोक्त चित्रकर्म, वराहमिहिरकृत प्रतिष्टांकाण्ड, आदित्यमेत, निमित्तोंध्याय, महाभारत, रत्नपरीक्षा, पतंजलिका योगशास्त्र और वररुचि, ध्यास, हरप्रबोध, कुमरिलकी उक्तियोंके उद्धरण दिये हैं । सैद्धान्तवैशेषिक, तार्किक वैशेषिक, पाशुपत, कुलाचार्य, सांख्य, दशबलशासन, जैमिनीय, बार्हस्पत्य, वेदान्तवादि, काणाद, ताथागत, कापिल, ब्रह्माद्वैतवादि, अवधूत आदि दर्शनोंके सिद्धान्तोंपर विचार किया है । इनके सिवाय मतङ्ग, भृगु, भर्ग, भरत, गौतम, गर्ग, पिंगल, पुलह, पुलोम, पुलस्ति, पराशर, मरीचि, विरोचन, धूमध्वज, नीलपट, ग्रहिल, आदि अनेक प्रसिद्ध और अप्रसिद्ध आचाय का नामोलेख किया है । बहुत से ऐतिहासिक दृष्टान्तोंका भी उल्लेख किया गया है । जैसे यवनदेश ( यूनान ! ) में मणिकुण्डला रानीने अपने पुत्र के राज्य के लिए विषदूषित शराब के कुरलेसे अजराजाको, सूरसेन (मथुरा) में वसन्तमतिने विषमय आलतेसे रंगे हुए अधरोंसे सुरतविलास नामक राजाको, दशार्ण (मिलसा ) में वृकोदरीने विषलिप्त करधनी से मदनार्णव राजाको, मगध देशमें मदिराक्षीने तीखे दर्पणसे मन्मथविन दको, पाण्ड्य देशमें चण्डरसा रानीने
छुपी हुई छुरीसे मुण्डीर नामक राजाको मार डाला * । इत्यादि । पौराणिक आख्यान भी बहुत से आये हैं । जैसे प्रजापति ब्रह्माका चित्त अपनी लड़की पर चलायमान हो गया, वररुचि या कात्यायनने एक दासीपर रीझकर उसके कहनेते या घड़ा उठाया, आदि । इन सब बातों से पाठक जान सकेंगे कि आचार्य सोमदेवका ज्ञान कितना विस्तृत और व्यापक था । उदार विचारशीलता । यशस्तिल रुके प्रारंभ के २० वें श्ले करें सोमदेवसूरि कहते हैं:
-
लोको युक्तिः कलाच्छन्दोऽलंकाराः समयागमाः । सर्वसाधारणाः सद्भिस्तीर्थमार्ग इव स्मृताः ॥
अर्थात् सज्जनोंका कथन है कि व्याकरण, प्रमाणशास्त्र ( न्याय ), कलायें, छन्दः शास्त्र, अलंकारशास्त्र और ( आहा, जैमिनि, कपिल, चार्वाक, कणाद, बौद्धादिके ) दर्शनशास्त्र तीर्थमार्गके समन सर्वसाधारण हैं । अर्थात् जिस तरह गंगादिके मार्ग पर ब्राह्मण भी चल सकते हैं और चाण्डाल भी, उसी तरह इनपर भी सबका अधिकार है। +
"
१ - " पूपाद इव शब्देतियेषु... पणिपुत्र इव पदप्रयेोगेषु " यश० आ० २, पृ० २३६ । २ ३, ४, ५, ६ - " रोमपाद इव गजविद्यासु रैवत इव हयनयेषु शुकनाश इव रत्नपरीक्षासु, दत्तक इव कन्तुसिद्धान्तेषु ”—आ० ४, पृ० २३६-२३७ | 'दत्तक' कामशास्त्र के प्राचीन आचार्य हैं । वात्स्यायनने इनका उल्लेख किया है । ' चारायण' भी कामशास्त्र के आचार्य हैं । इनका मत यशतिलकके तीसरे आश्वासके ५०९ पृष्ठ में चरकके साथ प्रकट किया गया है । २, ३, ४, ५ – उक्त पांचा ग्रन्थोंके उद्धरण यश ० के चौथे आश्वासके पृ० ११२ - ३ और ११९ में उद्धत हैं । महानगरका नाम नहीं है, परन्तु- पुराणं मानवो धर्मः साङ्गो वेदश्चिकित्सितम् ' आदि लोक महाभारतसे ही उधृत किया गया है ।
६ - तदुक्तं रत्नपरीक्षायाम्- ' न केवलं ' आदि; आश्वास ५, पृ. २५६ ॥
७ - यशस्तिलक आ० ६, पृ० २७६-७७ । ८-०९-आ० ४, पृ० ९९ १०, ११ - आ० ५, पृ०२५१-५४ / १२-३ सत्र दर्शनांका विचार पाँचवें आश्वासके पृ० २६९ से २७७ तक किया गया है ।
१३ – देखो आश्वास ५, पृ० २५०-५५ और २९९ ।
* यलिक आ० ४, पृ० ५३ । इन्हीं आख्यानों का उल्लेख नीतिवाक्यामृत ( पृ० २३२ ) में भी किया गया
हे | आश्वास ३० ४३१ और ५५० में भी ऐसे ही कई ऐतिहासिक दृष्टान्त दिये गये हैं ।
X ० ० ४ पृ० १३८-३९ ।
..
+ " लोको व्याकरणशास्त्र युक्तिः प्राणशास्त्र, समयागमाः जिनजैमिनिकपिलकणचर चार्वाकशाक्याना सिद्धान्ताः । सर्वसाधारणाः कथिताः प्रतिपादिताः । क इव तीर्थ मार्ग इव । यथा तीर्थमार्गे ब्राह्मणाञ्चलन्ति, चाण्डाला अपि गच्छन्ति, नास्ति तत्र दोषः । " -- श्रुतसागरी टीका ।
Aho ! Shrutgyanam