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१४४] जैन साहित्य संशोधक .
[ खंड २ साहित्य-समालोचन Ardha-Magadhi Reader By Banarasi Das Jain M. A..
Published by the University of the Punjab, Lahore. अर्धमागधी रीडर, ग्रन्थकार प्रो. बनारसी दास जैन, एम्. ए. ओरिएन्टल कॉलेज, लाहोर ।
बम्बई, कलकत्ता और पंजाब युनिवर्सिटीके अभ्यासक्रममे कुछ वर्षोंसे जैन साहित्यको भी स्थान मिला है और बम्बई इलाखेमें तो कुछ विद्यार्थी जैन साहित्यका आभ्यास कर एम्. ए. तक भी पहुंचे हैं। लेकिन विद्यार्थियोको और प्रोफेसरोको इस विषयमें अभी तक सबसे पहली कठिनाई तो इसी बातकी हो रही है कि पढने-पढानेके लिये वैसी कोई पुस्तके ही अभी तक तैयार नहीं हैं। कुछ वर्षोंसे जैन साधुओका प्रयत्न इस बारे में तो यथेष्ट हो रहा है कि भंडारोंमें पडे पडे सडने वाले संस्कृत प्राकृत आदि जैन ग्रन्थोको छपवा छपवा कर प्रकट कर दिये जाय । परंतु साधुओंके इस प्रयत्नकी मर्यादा बहुत ही संकुचित और कार्यकी पद्धति बहुत ही शिथिल होने के कारण, युनिवर्सिटीके विद्यार्थियोंको उसका कोई लाभ नहीं मिलता। इस लिये यह काम, जैनसाहित्यके. आभ्यासी जो थोडे बहुत स्कॉलर हैं उन्हींके द्वारा किये जानेकी आवश्यकता है।
हमें यह जान कर प्रसन्नता हुई कि श्रीयुत प्रो. बनारसी दासजीने यह अर्धमागधी रीडर तैयार कर, इस महत्त्वके कामका प्रशंसनीय प्रारंभ कर दिया है। यह रीडर, अर्धमागधी अर्थात् जैनागमोकी प्राकृत-भाषाके अभ्यासियोंको प्रावेशिक शान करानेमें अच्छी मदत दे सकेगी। इसका संकलन और संपादन उत्तम रीतिसे किया गया है। प्रारंभमें, पहले अर्धमागधीका संक्षिप्त व्याकरण दिया गया है। उसके बाद, अर्धमागधी भाषा और उसके साहित्यका परिचय कराया गया है। तदनन्तर, कुछ उपयुक्त ऐसे छपेहुए जैन ग्रन्थोकी सूचि जैन साहित्यके प्रकाशन-कार्यमें विशिष्ट योग देनेवाली कुछ व्यक्तियोंका परिचय; और अन्तमें हस्तलिखित ग्रन्थ पढनेवालों के लिये पुरानी लिपि विषयक कुछ सूचनाएं भी देदी हैं । फिर कोई ७८ पन्नोमे, विवागसुय, नायाधम्मकहा, ओववाइयसुत्त, आयारंगसुत्त, पण्हावागरण सुत्त, सूयगडंगसुत्त, उत्तरज्झयणसुत्त और दसवयालियसुत्त आदि जैन सूत्रोमेसे चुन चुन कर कितनेक मूल-पाठ दिये हैं। पाठोका चुनाव अच्छा और भाषा तथा साहित्यकी दृषिसे विशिष्ट परिचायक किया गया है। फिर इन मूल-पाठोका इंग्रजी अनुवाद और कुछ आवश्यक टिप्पणियां देकर सर्वांत महत्त्वके शब्द और नामोंकी एक सूचि भी दे दी है। इस प्रकार नवीन अभ्यासीकेलिये इस रीडरको उपयोगी बनानेमें प्रो. जैनने जो खूब परिश्रम और प्रयत्न किया है तदर्थ वे विद्यार्थियोंके धन्यवादके पात्र हैं और हम आशा करते हैं कि भाई श्री बनारसी दासजी इस विषयका अपना प्रयत्न सतत जारी रखेंगे और आगे पर हमको इससे भी अधिक महत्त्वकी कोई ऐसी पुस्तक भेट करेंगे।
प्रस्तुत रीडरकी एक हिन्दी आवृत्ति भी बनारसी दासजीने तैयार की है जो कभी शायद जैन साहित्य संशोधकके पाठकोको पढनेको मिल सकेगी। प्रकाशकः-शाह केशवलाल माणेकचंद, माननीय कार्यवाहक जै० सा० सं० कार्यालय
. . . भारत जैन विद्यालय, पूना शहर. मुद्रक:-गणेश काशिनाथ गोखले, सेक्रेटरी श्री गणेश प्रिंटिंग वर्क्स, ४९५ शनवार पेठ, पुणे शहर.
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