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अंक २]
श्री महावीरनो समय-निर्णय
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तीर्थकर वर्धमाननो समय. [ जर्नल ऑफ धी रॉयल एसियाटिक सोसायटी, सन १९१७, पृष्ट १२२-३० मा प्रकट थएल एस्. वी. वेंकटेश्वरना THE DATE OF VARDHAMANA नामना लेखनो अनुवाद.]
___ वर्धमान ए आधुनिक जैनधर्मना संस्थापक छे. तथा तेमनो समय ते प्राचीन हिंदुस्थान (आर्यावर्त)नी कालगणनामां एक जूनामां जूनो सीमासूचक स्मरण-स्तंभ छे. आम छतां तेमना निर्वाणना समयना विषयमां घणा मतभेदो छे. जैन तीर्थकरोना जीवन तथा युगना संबंधमां पौराणिक हकीकतो तो पुष्कळ उपलब्ध थाय छे. परंतु आ परंपरागत कथनोनी विगतो अत्यंत गुंचधणीवाली तथा परस्पर घणी विरोधात्मक जणाई आवे छे. तेमां वळी केटलीक तो सामान्य पणे खोटी रीते समजवामां तथा समजाववामां आवेली छे. आ लेखमां आ सघळां परंपरागत कथनोने, तेमना युगनारीतरिवाजो, गौतम बुद्धनी साथेनोवर्धमाननो संबंध, तेमज आ बंने त्यागी महापुरुषोनो, मगधना राज्यवंश-के जे वंशनी साथे भारतवर्षना इतिहासना प्रारंभिक काळमां, आ बन्ने धर्मों अत्यंत गाढ संबंध धरावता हता-ते वंशना राजा
ओ तथा महाराजाओनी साथेना तेमना संबंधने अनुकूल थाय ते रीते समजाववानो यत्न कर वामां आवेल छे. भारत वर्षनी, इ. स. पूर्वेनी छठी अने पांचमी शताब्दिनी कालगणनानी साधा रण रीते यथार्थ योजना, हिंदू, बौद्ध अने जैन साधनो, के जे अनुक्रमे पुराणो, दीपवंश अने गाथाओमांथी मळी आवे छे, ते साधनोमांथी मळी आवतां अनेकविध कथनोने परस्पर संगत करवाथी, करी शकाय छे. आ प्रकारनी कालगणनानी एक विगतवार योजना गत वर्षना इंडिअन एन्टीक्वेरीमा आपली छे. तेटला माटे तेज बाबतनी पुनरुक्ति करवानी अहीं जरुर नथी. मारी पद्धतिनी गणना अनुसार, वर्धमान साथे संबंध धरावता शैशुनाग राजाओनी तारीखो आपवी ज अहीं पुरती थशे. बिंबिसार उर्फे श्रेणियनो समय : ५१३-४८५ इ. स. पूर्वे छे. अजातशत्रु उर्फे कूणिक इ. स. पूर्वे ४८५-४५३, उदय उर्फे उदायी भद्रक, इ. स. पूर्वे ४५३४३७, अने दर्शक इ. स. पूर्वे ४३७-४१३.1
जैनपरंपरा अनुसार वर्धमान श्रेणिय बिंबिसार साथे संबंध धरावता हता. श्रेणियनी राणी चेल्लणा वैशालिना चेटक राजानी पुत्री हंती. अने वर्धमाननी माता त्रिशला ते एराजानी बहेन हती.2 आ उपरथी बिंबिसारनी राणी ए वर्धमाननी पहेली बहेन (मामानी छोकरी) थाय. आपणने मळी आवती नोंधो उपरथी, वर्धमाननो पोतानी बेन-मगधनी राणी-साथेअगर तो तेना पति बिंबिसारनी साथे वयोविषयक शो संबंध हतो, ते कल्पी काढवू अशक्य छे. जैन नोंधोमां वर्धमान अने बिंबिसार ए बनेना परस्पर थएला मेळाप संबंधी घणी ज जूज हकीकत मळे छे. जेकोबीनुं मानछे के उत्तराध्ययनसूत्रना वीसमा अध्ययनमां आवी एक परस्पर थएली मुलाकातनो उल्लेख छ. जो, ते कहे छे तेमज होय तो पण बिंबिसार ए वखते खासो वृद्ध होवो जोइए; अने ए जैन यति तो ते समये तद्दन युवान हता तथा स्पष्ट रीते तरतना ज दीक्षित थएला हता. परंतु वास्तविक रीते, आ अध्ययनमा उल्लिखित जैन यतिने वर्धमान कहेवा ए घणुं शंका भरेलु लागे छे; कारण-यति एम कहे छे के तेमना पिता कौसा म्बिना (रहीश) छे. ज्यारे आपणे ए तो स्पष्ट जाणीए छीए के वर्धमानना पिता तो वैशालीनी
- 1 इन्डि• एन्टि. १९१५ पान ४१-५२. 2. कल्पसूत्र (जेकोबीनी आवृत्ति) पा० ११३. 3. S. B. E., Vol. XLV, pp. 100-1,
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