________________
अंक ३]
वीर वंशावलि. जात्रादि प्रमुख महातीर्थ जाणी वर्ष मांहिं बार च्यार सम्मित शिवरनी यात्राने हेते पूर्वदेशे विहार कीधो । संघपति हुई। जात्रानो लाभ कमावें । प्रचूर चित्ते सप्त तहनी च्यार पेढीने आंतरें श्री देवढी क्षमाश्रमण हुआ । घेत्र वित्त बावतो हुआ, मार सब्द मुखें न कहें, कांने हिंवे श्री आर्य सुहस्ती सूरीई वर्ष त्रांस संसारी पद भोगवी पण मार सब्द सांभले नही । न्याय घंटा वाजे | एहवी श्री स्थूलीभद्र स्वामीने हस्ते दीक्षा लीधी, अने वर्ष रीते संप्रति न्याय धर्मि राज्य करें। एहवें एक साथ चोवीस शिष्य पणे गुरुनी सेवा कीधी । पुन: वर्ष छहेमास घमणनो चोवीहारी तप संपूर्ण काउसर्गपारी गिरि- तालीस युगप्रधान पद भोगवी सर्वायु, वर्ष सोनुं संपूर्ण गुफा माहिथी नीकलो, उजेणी नगरे पारणाने दि आहार श्री वीर मुक्ति हुआ पछी बसें ने एकांणु वः श्री आर्य अथें आव्या । तिहां दुर्मिक्षने योगें भिखारी वणा हूआ । सु ( १६-२) हस्ती सुरी स्वर्ग हूआ ।। पाट ८ ।। कोइ तेहने अन्न न आयें : एहवे ते साधुनें तपस्वी जाणीने ९ तत्पटे श्री सुस्थित स्वामी ।। १ ।। ( १५-२) गृहस्थ कमाड उवाडी घरमांहि लीधा । लघु गुरु भाइ श्री सुप्रति बद्ध स्वामी ।। २ ।। साधुयें पारणो करी पुनः अठाइ पचरखी, आवी गुफाई ए बिह गुरु भाइना व्याघापत्य गोत्र छे । ते माहिं निश्चल काउसग घांने रह्यो । एतले सघले भिष्यारीइं श्री सुस्थित स्वामी ते पटधर जाणवा अनें लघु भाइ श्री मली चिंतव्युं जे र यती तरत आहार लेइ गयो छे, नुप्रतिबद्ध स्वामी ते गळूनी चिंताना करणहार हुआ | तिहां भिखारीए आवी तेह तपसीना उदर विदारी अन्न ते मात्रै ए बिहू गुरुभाई नाम जोडे लख्यां छे । पूनः ए पाधो । नगरमां वात प्रसिद्ध थई । संप्रतिइं यतीघात बेहू गुरु भाइई आलीयखंडे काकंदी नगरीइं, महर्षि जाण्यो । श्री केवली तीर्थकर वचनानुसारें भस्मग्रहने योगे गौतम कथक जे सूरी मंत्र तेहनो कोटिवार स्मरण कीधो। दिन रहांणीनों समय जांणी संपतिइं समग्र देशे श्री आर्य तिवारे नवमा पाट थकी कोटिक गठे एहवा बीजा नाम सुहस्ती प्रमुख साधु समुदायने घणे आग्रहें महा महा- प्रगट हुओ। ते पहिला श्री सुधर्मा स्वामी थकी मांडी त्सवें वेंसूकृत (?) धर्मशालाई पधराव्या । कपाट टुआ छे आट पाट सुधी निग्रंथ गछ एहवो नाम कहेंबातो । नही । पूनः संप्रति राजाई पोताना दास तथा घरनी दासी तहने सर्व आय संपूर्ण श्री वीर मुक्ति हुआ पछी वर्ष तहने साधु साधवीनो वेष देइ अनारज देंसें विहार त्रिणसे अनें बहोतर वितकें थके श्री सुस्थित स्वामी स्वर्ग कराव्यो । चणा गाढा मिथ्यात्वीने समकीत पमाडी आर्य हुओ । पूनः श्री वीर निर्वाण हुआ पछी त्रिणसे अनें जैन कीधा | इत्यादि उत्तम सूकृते करी इह परभव उगणासी वर्ष बीतें, श्री भृगुकछ नगरे श्री आर्य खपू. आत्मा कल्याणन हेतु जाणी ( १६-१) नीपजावी, टाचार्य प्रगट हुआ | पाट ९ मो । कौरव कुल मोरिय वंस सोभावी संप्रति नृप सो वर्ष आउ
१० तरटे श्रीइंद्रदिन्न सूरि । संपूर्ण, सदगतिनो भजनार हूओ ।
अने लघु गुरु भाइ बीजा श्री प्री ( १७-१ ) यग्रंथ गाथा-कोसंबीए जणं दमगो पव्वाविओ तआ जाओ।
सूरी । निहां वृद्ध गुरु भाई श्री इंद्रदिन सूरी तेहनो उजणीय. संपइ राया सा नंदओ सुहत्थी ।।१|| कौसिक गोत्रकलघु गुरु भाइ प्रीयग्रंथ सूरी तहना कासप
इति संप्रति नृप सबंध | गोत्र , श्री इंद्रदीन सूरी विहरता मुढरीई पुहूता | एहवें ए श्री आर्य सुहस्ति सूरि लधु गुरुभाइ ते गछना श्री वीर मुनिः हुआ पठी च्यारसें सीतर वर्ष गया हुते पटोधर हूआ, अने बड़ा गुरु भाइ आर्य महागिरि सूरि मा व देश उजेणी नगरें परमार वंसें राजा श्री विक्रमातेहूणे जिन कल्पनी तूलना सीधी । दाक्षिण पणे राज्य दित्य प्रगट हुओ | तेह वर्षन मान कहें छे । श्री वीर पिंड लीधो । ते मारे बिडूं गुरु पाइने मांडली अहार चिरं (?) पालक राज्य वर्ष साठ । नंद राज्य वर्ष पाणीनों व्यवहार,जूदो हूओ। श्री महागीरी सुरीई १५५ । मोरिय राज्य वर्ष १०८ । पुप्फमित्र राज्य
धार. २
Aho I Shrutgyanam