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________________ अंक ४] महावीर निर्वाणनो समय-विचार ध्यायना बे शिष्यो बादशाही नोकरोने साथे लई आगरा उल्लेख करवामां आव्यो छ के-'उस्ताद सालीवाहन शहरमा जाते ते बाबतनो ढंढरो पीटता फरे छ; इत्या - बादशाही चित्रकार छे. तेणे ते समये जोयो तेवो ज दि दृश्यो बहु सुन्दररीत चित्रेलां छे. चित्रना एक भागमा आमां भाव राक्यो छे.' आथी आ सचित्र-पत्रनी ऐतिविजयसेनसूरिनी व्याख्यानसभा पण चित्रली छे अने हासिक महत्ता केटली विशेष छे ते दरेक विद्वान् समजी तेमा विवेकहर्ष गणी जाते ए फरमान पत्र लई आचार्यनी शके तेम छे. सेवामा समर्पित करी रह्यानो देखाव पण काढेलो छे. पत्रनी भाषा हिन्दी मिश्रित गुजराती छे अने ते ___ आ चित्रमा आलेखली आकृतियो बह स्पष्ट अने काना-मात्रना हिसाब वगर जेम व्यापारी लोको लखे छ तादृश छे. दरेक प्रधान आकृति उपर तेनुं नाम पण तेवी रीते लखाएली छे. आ नीचे प्रथम पत्रनी मूळ काळी शाहीथी लखेलुं छे. चित्रनी महत्ता एटला उपरथी ज नकल- असलनी भाषामा ज-आपी छे अने तेनी नीचे समजी शकाशे के ते खुद बादशाही चित्रकारनी पींछीथी लाइन जी लाईनवार हालनी भाषा प्रमाणे शुद्ध-संस्कारी रूपान्तर आलेखायुं छे. ए बाबत ए पत्रमा नीचे प्रमाणे खास आप्युं छे. (मूळ नकल) (१) स्वास्ताश्रीचंतामणापारस्वजणाप्रणामो श्रीदेवकापाटणामाहानगरसूभथांने पूजआरंद्धा माहाआतमो(२) अतंमचारीतरपात्रसूरामणा कमतं अंधकारनभोमणा कलकालगउतमोअवतार सरस्वती कंठ आमरणा(३) चउदवदानद्धांन ऐकबद्ध असंमना टालणाहार दूवद्ध रंम परूपक त्रगा ततवना जाणा चार कखाअना. (४) जीपक पंचमाहाबरतना पालणाहार छकाअना पीहर सातमअना टालणाहार आठ मद्ध सानकना जीपक. (५) नववाडवसद्धबरंभचरजानापालणाहार दसवद्धसरमणारंमपत्रपालक अगर अंगबार ऊपांगना जाणा. (६) तेर काठोआना जीपक चऊदभेद जीवना परोपक पनर परमाधार्मना भेदना जाण सोलकलासं(७) पुरण चंद्रवदन सतरभेद संज्यमना प्रतिपालक अढार सहस सिलंग रथना (८) धारकः उगणिस न्यतधरमना परूपक विस असमाधीथाने रतिः ऐकविस सवल(९) ना वारकः बावीस परीस्ताना जीपकः तेवीस सुगडा अंग अधेनना जाण चैवि(१०) स तिथंकरनी आगन्यना प्रतिपालकः पंचविस भावनाना भायकः छविस(११) दसाकलपविवहारना जाण सताविन्न साधगुणना उपदेसक अठाविस आया(१२) रकलपना जाण उगणातेस पपसुत्त प्रसंगना टालणहार: तिस मोहनी स्थानीक( १३) ना जीपक ईकतिस सिधगुणना जाण: बत्तिस जोग संग्रहना प्रतिपालक ते ---- (१४) तिस गुरनी आस्यतनाना वारणहारः चत्तिस अतीसैना जाणः पत्तिस श्रीवित-- (१५) रागवणीना गुणना कथकः छत्तिस छत्तिसी सुरगुणे वोरजमानः वादीगुर(१६) ड गोवीद वादीगोधुमघरट मरिदतवादी मरट सरसतिलबधप्रसादः दली । अनेक दुरवादवाद समुद्रनी परि गंभीरः मेरपरबतनि परी धिरः प्रापत सं(१८) सार समुद्र तिरः मायमही विडारणसीर: श्रीजिनसासन सहकारकीर (१९) करमसत्त विडारणवीरः वाणि मीठि ईम्रतखीर: धरमकरतै न कर धीरः नीर(२०) मलचित जीम गंगानीरः उजल जससागर डंडीरः भंजण भवभिरः साभा(२१) गगुणे अभिनवै गुरहीर जीण प्रतीबाध्य अकबर साह वडवीर दी(२२) न करणीपर अधीक प्रताप तेज सुविहत जणसु धरे हेज वह वैरागी अती Aho Ishrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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