SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन साहित्य संशोधक [ख १ हतो तेनी असर सज्जडरीते वधती जती हती. बुद्धना बहु तो द्विजोने उद्देशीने छे. वैदिक संप्रदायना अवशिष्ट समये अने त्यार पछी पण केटलाक वखत सुधी ब्राह्म- वर्गोने मांसाहारमाथी मुक्त राखवामां आव्या न णोए वनस्पति अहारनो स्वीकार पूरे पूरो कर्यों न हतो हता. तेथी आधुनिक स्थिति बहुशः नीचे दर्शाया मुजब ए वात सुप्रसिद्ध पंच पंचनख व्रतथी साबीत छे. दक्षिण हिन्दमां सर्वत्र ब्राह्मणो वनस्पदि आहार थाय छे. महाभारत ( १२, १४१, ७० ) मां आ करनारा छे. उत्तरमा घणा ब्राह्मणो मत्स्य-भक्षक छे नियम नीचेना रूपमा आपेल छ अने काश्मीरमा तो अन्य मांस पण खाय छे. क्षत्रियो " ब्राह्मण, क्षत्रिय अने वैश्ये मात्र पांच पांच नख वाळा .. सदा मोटे भागे मांस खाता ज हता अने हजुए प्राणीनुं भक्षण करी आ धर्म प्रमाणे चालवं अने जे अ. खाय छे. वैश्यो (व्यापारी वर्ग, जेने दक्षिणमा चेटीभक्ष्य छे ते प्रत्ये मन दोरवू नहीं." आर अने उत्तरमां वाणीआ विगेरे कहे छे तेओ) साधारण रीते ब्राह्मणोना भोजनतुं अनुकरण करता ए ध्यानमा राखवा जेवू छे के ते ज नियम एक देखाय के. शद्रो मांस-भक्षक तेम ज वनस्पति-भाजी पण जूना बौद्ध जातका अने लगभग बधा जूना ब्राह्मण होय छे. घणा भागे तेओ बनस्पति आहार उपर रहे धर्मग्रंथो-स्मृतिओमां' मळी आवे छे. कूर्मपुराणमा छे. केम के मांस घणुं मोधू होवाथी तेमना माटे दुर्लभ तेने मनुए कहेलो बताव्यो छे, परंतु मनु (तेम ज गौतम) जेवं के. छ प्राणीओनी अनुमति आपे छ; अने आपस्तंब सातनी पण रजा आपे छे. महाभारतमां बीजे स्थळे (१२, संन्यासीओना विषयमां तो में प्रथम ज कहयुं छे के ३७, २१.-२४) ब्राह्मणने अभक्ष्य एवा प्राणीओनुं जे नियमोने ते ओ अनुसरे छे ते घणे अंशे जैन मतने एक लांबु लीष्ट व्यास मुनिए आप्युं छे. जो भक्ष्य मळता आवे छे. तेओ झाझे भागे तपस्या करे छे अने प्राणीओनी संख्या बहु थोडी होत तो व्यास आटली म- तेथी तेओमांना घणा तो मांसनो स्पर्श पण करता हेनत लेत नहीं. परंतु समय जतां ज्यारे जैन अने नथी, केम के इंद्रियोना विषयोनी वृत्तिओने तेथी पोषण बौद्ध धर्म देशमा प्रबळ थया त्यारे प्राणी-हिंसा अने मळे छे. परन्तु जन्मथी ब्राह्मण एवो एक आदर्श रूप मांस-भक्षण मात्र यज्ञमां ज करवां एवो नियम कर्या अने विद्वान् संन्यासी के जेना परिचयमा हुं आव्यो छु, वगर ब्राम्हणोथी चलावी लेवायं नहीं.१२ अने तेमां पण तेणे मने कहयु के श्रद्धापूर्वक अर्पण करवामां आवेली पशुहिंसा वधारे ने वधारे ओछी करवामां आवी अने मांसवाळी वस्तुनो पण अनादर करवो ए खरा भिक्ष अन्ते मांसनी इच्छा राखनारा ( आमिषकांक्षिणः ) माटे अयोग्य अने दौर्बल्यसूचक छे. तेनो विचार आवो पितृओने [ जेओनो मांसभक्षणनो हक महाभारतना होय एम जणाय छे, के जे यति तेने आपवामां आवेली छल्लो भागोमां सहेज नामरजी साथे स्वीकारवामां आव्यो खावायोग्य गमे ते वस्तु खावाने शक्तिमान न होय, ते छ ] पण वनस्पति-भक्षक थवानी फरज पाडवामां तैत्तिरीय उपनिषद्मा ( २, ७) कहेल, सेनी अने आवी. अने आखरे दक्षिण हिंदमां ई. स. ना तेरमा सैका- संसारनी वच्चे रहेला खाडानी ( 'उदरं अन्तरं' मी ) पेली. मां उत्पन्न थएला माधव संप्रदायना केटलाक प्रतिनि- पार जवाने फतेह थयो गणाय नहीं; तेम ज द्वन्द्व-मोह धिओए अन्तिम पगलं लीधुं. तेमणे गमे ते प्रकारनी अने जुगुप्साने जीत्यां गणाय नहीं, के जे आत्म-साक्षाप्राणीहिंसाने पापवाळी गणीने धिकारी अने यज्ञमां प्राणी त्कारमा मुख्य साधन मनाय छे. आ उपरथी 'मिलिबलिदानने स्थाने कहेवातो पिष्ट-पशु एटले अन्ननी बना- न्दपह्न ' ( ३,६) नो एक जाणवा जेवो उल्लेख स्मरणवेली प्राणीनी आकृति वापरवानो रिवाज दाखल कर्यो.५४ मां आवे छे, जेमां बौद्ध साधु कहे छ के " हे महाराज ! परन्तु आ सर्व ब्राहाणोने ज उद्देशीने छ; अथवा ते हजु रागथी मुक्त थयो नथी, जे भोजन कस्ती वखते Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy