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________________ १८२ जैन साहित्य संशोधक वेदान्त अने सांख्य बन्ने सत्कार्य वादने माने छः अर्थात् एक जातना द्रव्यो माने छे. एक बाबतमां, एक विरुद्ध कार्य कारणने भिन्न माने छे. (३) ए बन्ने दर्शनोमां वैशेषिक विचार अने तद्भिन्न जैन सिद्धान्त वच्चे केटलुक गुण अने द्रव्यनो पृथक् विभाग थरलो छे. ए छेल्ली बा- सादृश्य जोवामां आवे छे. वैशेषिक मतमां चार प्रकारना बत तो आपणे उपर चचीं गया छीए; तेथी हवे आपणे शरीरो मानेला छे-पार्थिव शरीर जेवू के मनुष्य पशु प्रथम बे मुद्दाओना संबंधमां विचार करवानो रह्यो छे. आदीनु, जलात्मक शरीर जेम वरुणनी सृष्टि मां छे, आ(१) अने (२) मां जे मन्तव्यो, निरुपण करेलुं छे. ग्नेय शरीर जेम अग्निनी सृष्टिमां छे, अने वायर्षय शरीर ते व्यावहारिक ज्ञान-साधारण बुद्धिना विचारो छे. (अर्था- जेम वायुनी सृष्टिमा मळी आवे छे. आ विचित्र विचार त् सहु कोई समजी शक तेवा छ ) कारण के आपणा. साथे सदृशता धरावनारो जैनदर्शनमां पण एक विचार छे. उपर वासनाओनी साक्षात् असर थाय छे ज, तेम ज कारण- जैनो पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय, अने वायुकाय; थी कार्य भिन्न छे ते पण आपणा अनुभवनी बहारनी वात एम ४ काय माने छे. आ४ मौलिक पदार्थों के जे नथी. उ.त. बीज अने वृक्ष ए बन्ने परस्पर भिन्न छे, एम मूळ तत्त्वो छ अथवा तो तेना पण सूक्ष्मभागो छ, तेनी दरेक विवेकी माणस जाणे छे; अने ते मात्र सामान्य अ- अंदर एक एक विशिष्ट आत्मा रहेलो छे, एम तेओ माने नुभवनो विषय छे तेम पण लाग्या विना नहीं रहे. आवा छे. आ जड-चैतन्यवादनो सिद्धान्त उपर जणाव्या प्रमाणे विचारोने अमुक दर्शनना खास लक्षण रूपे मानी शकाय असल सचेतनवादनुं परिणाम छे. वैशेषिकोनो एतद्विषयज नहीं; अने एक बीजा मतोमा आवा विचारो समान- क विचार जो के मूळ एक ज विचार प्रवाहमाथी उत्पन्न भावे ते उपरथी ते, एके बीजाना मतमाथी थएलो छे खरो, परन्तु तेमणे ते विचार लौकिक पुराणोलीधेला के तेम पण कही शकाय नहीं. परंतु जो बे भिन्न ना अनुरूपे गोठवेलो छे. आ बन्नेमां जैनमत वधारे प्रा. दर्शनोमां परस्पर विपरीत विचारदशी एक ज सिद्धान्त चीन छे अने ते वैशेषिक दर्शनना चार प्रकारना शरीर आव्यो होय तो ते बाबत अवश्य विचारणीय होय . वाला मतना करतां पण तत्त्वज्ञानना वधारे पुरातन विकासआवो सिद्धान्त मूळ तो ते एक ज दर्शनमाथी उत्पन्न क्रमना समयनो छ. मारा अभिप्राय मुजब वैशेषिक अने थएलो होय छे अने ते तेमां सुपतिष्ठित थया पछी ज अ- जैन दर्शननी वच्चे एवो कोई पण संबंध ज न हतो न्यद्वारा स्वीकृत थाय छे. दिक् अने आकाश ए के जेथी एक दर्शने बीजामांथी विचारो लीधा छे, एम बन्ने भिन्न द्रव्यो छे ए जातनो वैशेषिकोनो स्थापित करी शकाय. छतां पण हुं एम कबूल करूंछ के खास स्वतंत्र तर्कसिद्ध सिद्धांत छे. ते जैन दर्शनमां ए बे दर्शनो बच्चे केटलुक विचारसादृश्य अवश्य रहेलुं छे. बिलकुल देखातो नथी. वेदांत अने सांख्य जेवा अधिक वेदान्त अने सांख्यना मूळ तत्त्वभून विचारो प्राचीन दर्शनामां तथा जैन दर्शनमा आकाश अने दिक् जैन विचारोथी तद्दन विरुद्ध छ; अने वच्चे बिलकुल भेद करवामां आव्यो नथी. ए दर्शनोमां तेथी करीने जैनो पोताना सिद्धान्तने काई पण आंच एकलं आकाश ज बन्नेनुं प्रयोजन सारे छे. आव्या दीधा सिवाय तेमना विचारो स्वीकारी शके ज वैशेषिक अने जैन दर्शननी बच्चे मूल सिद्धान्तोमां नह नहीं. परन्तु वैशेषिक ए एवा प्रकारचें दर्शन के के जेथी भेदसूचक एवां केटलाक उदाहरणो नीचे प्रमाणे छे. जैन सिद्धान्त पोताना मतने माघात पहोंचाडया सि. पहेलाना मते आत्माओं अनन्त अने सर्वव्यापी ( विभु) वाय केटलीक हद सुधी तेनी साथे संमत थई शके छे. छे; परन्तु बीजाना ( जैनोना ) मते ते ओ मर्यादित परि. अने आथी ज न्याय-वैशेषिक दर्शन उपरना ग्रंथकारोमा माणवाळा छे. वैशेषिको धर्म अने अधर्मने आत्माना जैनोनां पण नामो जोवामां आवे तो तेमां मवाई पामवा गुणो माने छे, परन्तु उपर जणाव्युं तेम जैनो ते बन्नेने जेवू नथी. जैनो तो आनाथी पण आगळ वधीने त्यां Aho ! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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