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खंड १ ]
( ६ )
(७)
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जैन दर्शन अथवा आर्हत दर्शनना तत्त्वज्ञाननो मूल पायो मंगी उपर रचाएलो छे. सप्तभंगी एटले वस्तु तत्त्वना स्वरूपनो संपूर्ण विचार प्रदर्शित करवा माटे योजेली सात प्रकारनी वाक्यरचना. ते आ प्रमाणे छे:( १ ) [ वस्तु ] कथंचित् छे.*
( २ )
नथी.
३)
छे अने नथी.
अवाच्य छे.
छे अने अवाच्य छे.
नथी अने अवाच्य छे.
छे, नथी, अने अवाच्य छे.
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मम्
|| नमोऽस्तु श्रमणाय भगवते महावीराय ॥
जैन साहित्य संशोधक
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३) स्यादस्ति नास्ति
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* संस्कृत वाक्यो भा प्रमाणे:
( १ ) स्यादस्ति (२) स्यान्नास्ति
गुजराती लेख विभाग
सप्तमं गी
सत्-असत्-तत्त्वमूलक प्रमाण पद्धति [ ले० अध्यापक रसिकलाल छोटालाल परीख. बी. ए. ]
अथवा
( ४ ) स्यादवक्तव्यम् (५) स्यादस्ति अवक्तव्यम् च (६) स्यान्नास्ति भवतव्यम् च ( ७ ) स्यादस्ति नास्ति अवतव्यं च
[ अंक ४
आ प्रमाणे सप्तभंगीनी वाक्यरचना छे. सामान्य वाचकने बहु विचित्र, निरुपयोगी अने हास्यजनक लागे तेषु तेनु बाह्य स्वरूप देखाय छे. परंतु गंभीर विचारपूर्वक जो ते संबंधी ऊहापोह करवामां आवे तो तेमां रहेलां तत्त्वो सर्वसाधारण अने सर्वव्यापी छे एम स्पष्ट जणाई आवशे. ए विचार पद्धतिमां सत्-असत् अनेक धर्मवत्त्व, अने एक वाक्य एक समये एक धर्मनो निर्देश ज करी शके ए तत्त्वोनो अन्तर्भाव थलो छे. ए तत्त्वोए आ विशिष्ट स्वरूप क्यारे अने कई परिस्थितिमां धारण क तेनो निर्णय करवो हजी सुलभ नथी. परंतु जैन न्यायशास्त्रना अध्ययन उपरथी तेनो विकास अने प्रयोजन तो आपणे चोक्कस जाणी शकीए तेम छीए.
जैनोना आ विशिष्ट सिद्धान्तना इतिहास विषे हालमां हूं आटलं जणावी शकुं छु :- उत्तराध्ययन सूत्रमां एनो निर्देश नथी. भद्रबाहुनी आवश्यक सूत्रनी निर्युक्तिमां
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