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अंक ४]
बालन्याय.
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प्रथम पाठ
नियम नहीं है वहां कोई ठीक नतीजा नहीं निकाला
ना सकता | आज हम दो उदाहरणोंपर और विचार प्रश्न-बच्चो ! आज रविवार है; तुम बतला करेंगे, कि “ नियम" से क्या प्रयोजन है।
सकते हो कि कल कौन दिन होगा? १-कल्पना करो कि एक ग्वाला सूर्य्य निकलनेसे उत्तर--सोमवार।
पूर्व शहरमें दूध बेचनेके लिये मेरे मकानके सामनेसे प्र०--क्या तुम बता सकते हो कि कल मंगल, जाया करता है । और यह भी कल्पना कर लो कि
बुध, या बृहस्पति वार क्यों नहीं होगा? यह मनुष्य ५० बर्षसे लगातार योंही मेरे मकानसे उ०-क्यों कि रविवारके बाद सदैव सोमवार ही जाता है और कोई नागा कभी इससे नहीं हुई। तो
होता है, कभी दसरा दिन नहीं होता। . क्या तुम बता सकते हो, कि प्रातःकाल भी वह प्र०-इस लिये यदि हम यह कहें, कि कल बुध मेरे मकान के सामने से गुजरेगा, या नहीं ?
होगा तो क्या हमारा कहना ठीक होगा? २--कल्पना करो मेरा एक मित्र रामदत्त है जो १२ उ.-नहीं साहब! आपका ऐसा कहना नितान्त लडकोंका पिता है। और जिसके आज तक कभी भ्रमात्मक होगा।
लडकी पैदा नहीं हुई । इस रामदत्तकी पत्नी गर्भवती (ख)
है । क्या तुम बता सकते हो कि उसका गर्भस्थ-बालक प्र०--बच्चो! हमारी जेबमें चाबियोंका एक पुत्र होगा या पुत्री ?
गुच्छा है, क्या तुम बतला सकते हो कि इन दोनों प्रश्नोंके उत्तर "नहीं" में है । क्यों कि उसमें कितनी कुंजियें है ?
पहिले प्रश्नमें दूध बेचनेवालेका बीमार हो जाना अउ०-नहीं साहब!
थवा किसी अन्य आवश्यककार्य या लाभकारी व्याप्र०-क्यों?
पारमें लग जाना, या दूध ही का अभाव हो जाना संभउ०-इस लिये कि कोई ऐसा नियम नियत
- व है । दूसरे उदाहरणमें प्रकृतिका कोई ऐसा नियम नहीं है कि जिससे किसी गच्छेकी कांज- नहीं है, कि अमुक मनुष्यके घर सदैव लडके ही होंयोंकी संख्या निर्धारित हो सके। लडकी कभी न हो।
बस हम देखते हैं कि “न्याय" के नियमका उपरोक्त प्रश्नोत्तर-रीतिसे यह प्रकट है कि न्याय- प्रय
र प्रयोजन ऐसी घटनाओंसे नहीं है, जो किसी मुख्य के अनुसार नतीजा वहीं निकाला जा सकता है कि. बातमें अब तक प्रचलित रहीं हों; किन्तु उस नियत १--जहां कोई निर्धारित नियम हो, और
' नियमसे है-जो अबतक सत्य पाया गया है और २-- वहां कोई न्यायका नतीजा नहीं निकल भविष्यमें भी कभी असत्य नहीं हो सकता । जैसे सकता जहां कोई निश्चित नियम नहीं है
बालक-पनका युवावस्थासे पहले होना ।
दूसरा पाठ बच्चो! कल तुमको यह बताया गया था कि जहां कोई नोट-अध्यापकका कर्तव्य है कि बालकों के मन पर नामा उदाहरणों द्वारा यह सिद्धान्त अंकित कर दे।
तृतीय पाठ उपरोक्त निर्धारित नियम ६ प्रकारके हो सकते हैं,
अधिक नहीं। १-कारणके ज्ञात होनेसे कार्यका अनुमान ।
जैसे सुलगते हुये गीले ईधनसे धुंवाका ज्ञान ।
Aho! Shrutgyanam