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________________ जैन साहित्य संशोधक. [ खंड . जेओ एकज व्याक्तिनी आज्ञानुसार पोतानी जीवनचर्या पाळता होय तेवा बधा यतियोना एक समुदायने जैनसाहित्यमा 'गच्छ' ना नामथी संबोधाय छे. ए'गच्छ 'नो जे नायक होय-जे व्यक्तिनी आशामां ए बधो यति समुदाय वर्ततो होय तेने आचार्य कहवामां आवे छे. आलङ्कारिक भाषामां कहीए तो गच्छनो नायकए एक प्रकारे राजा गणाय. जेम राजानी आज्ञानसार तेनो बधो आधिकारी-वर्ग अने प्रजावर्ग पोतानी जीवनचर्या चलाये छे तेम आचार्यनी आज्ञानुसार तेनो बधो यतिसमूह अने अनुयायीगण पोतानी धर्मचर्या चलावे छ. आ आलङ्कारिक कल्पना मध्यकालमां तो लगभग यथार्थरूप पण धारण करवा जेटली प्रयत्नती थई गई हती. ए समयमा आचार्य मूर्तिमन्त राजा जेवाज रूपमा देखावाना मोहमा सपडाई गया हता. राजानी माफक आचार्य पण छडीदार, चोपदार, पालखी, नगारो, निशान, चमर आदि राज्यचिन्हो धारण करवा लाग्या हता. अस्तु. जेम राजा पोताना अधिकारीयोमाथी अ. क अधिकारीने अमक स्थाननो अधिकार चलाववा मोकले, तेम ए आचार्य पण पोताना आज्ञानुवर्ती यतियोने दर वर्षे जुदा जुदा स्थळोभां चातुर्मास करवा माटे मोकलता. आ माटे तेओ' आ वर्षे अमुक यतिए अमुक स्थानमा चातुर्मास रहे,' एवो आदेश (हुकूम) रेक वर्षे काढता अने जेम आजे गवर्मेटना प्राईवेट सरक्युलरो दरेक अधिकारीने मोकली देवामां आवे छे तेम ते आदेशोनी अनेक नकलो करावी समुदायना दरेक यतिपासे पहोंचाडवामां आवती. आ प्रकारना लखाणवाला आदेशपत्रने क्षेत्रादेश पट्टक' कहेवामां आवे छे. क्षेत्र एटले चातुर्मास रहेवा माटेनुं स्थान, अने ते सम्बन्धी आचार्यना अ आदेश एटले हकम नो जे पोते क्षेत्रादेश पट्टक' आवा पट्टको अर्थात पट्टाओ दरेक गच्छ अने समुदायना आचार्यों काढता. ए पट्टकोनी लखवानी रतिमा साधारणरीते प्रारम्भमा स्वर्गस्थ आचार्यने नमस्कार करेलु होय छे. पछी जे वर्ष माटे ए पट्टक काढवामां आव्यो होय तेनो उल्लेख करवामां आवे छे. तदनन्तर वर्तमान आचार्य के जेना तरफथी ए पट्टक कढाय छे-तेनुं नाम होय छे अने ते पछी जे देशना क्षेत्रो माटे ए आदेश होय छे तेनुं नाम नोंधाय के प्रारंभमां आटलं मथालु कर्या पछी नीचे क्रमवार एकेक पंक्तिमां, जे यतिने जे गामे रहेवार्नु होय तेनी सूचि आपवामां आवे छे. तेनी नीचे जो कोई यतिने कोई गुन्हाबद्दल समदायमांथी बहिष्कृत करवामां आव्यो होय छे तो तेनी पण सूचना आपवामां आवे छे अने छेवटे बे-चार पंक्तिओमा आचार्य तरफथी बधा यतियोने सामान्य शिखामण अपा. एली होय छे. तेमां लखेलुं होय छे के आ पट्टा प्रमाणे दरेक यतिए पोतपोताना निर्दिष्ट स्थाने वेळासर जई रहे. समुदायनी मर्यादानुं जे विधानपत्र करेलं होय ते प्रमाणे वर्तवु. जे कोई अविचारितरीते वर्तशे तेने सखत उपालम्भ आपवामां आवशे. जे स्थाने रहे, होय त्यां श्रावको साथे लडझघड करवी नहीं. लोक व्यवहारतुं यथायोग्य पालन करवू. चातुर्मासमां क्याए जवू आवq नहीं. दरेकरते सावधान . आपटकोना शिरोभागे राजमद्रा (मोहोर-शिका)नी माफक आचार्य पोताना हाथे "सही" अथवा " सही छइ" एवा शब्दो सीक्स-लाईन के एईट लाईन पाईका करतांए वधारे मोटा कदवाळा अक्षरोमां लखे छे-के जे प्रकार उदयपुर (मेवाड) ना महाराणाओ तरफ। निकळता जना फरमानोमां पण जोवामां आवे छे. आ प्रकारना १० पट्टको अमने प्र० श्री कान्तिविजयजी महाराजना शाखसंग्रहमांथी मळी आव्या छे जे क्रमथी अहिं प्रकट करवामां आवे छे. आ दसे पट्टको तपागच्छनी मुख्य शाखाना छे. आ पट्टको उपरथी केटलीए उपयोगी बाबतोनी माहिती मळी आवे छे. आजथी मात्र १०० वर्ष पहेलांज जैन यति. यानुं सामुदायिक बन्धारण केवु व्यवस्थित हतुं, जैनसमाजनी केटली बहोळी संख्या हती, त्यागियो पण केटली मोटी संख्यामा विद्यमान हता, तेमना उपर आचार्यनी केवी सारी सत्ता हती, समाजमा यति. यो कोई पण प्रकारनो विखवाद उभो न करी शके ते माटे आचार्यों केवी काळजी राखता, इत्यादि अनेक सामाजिक बाबतो उपर आ पट्टकोथी जाणवा जेवो प्रकाश पडे छे. आ पट्टको प्रमाणे सो दोड .. Aho! Shrutgyanam
SR No.009878
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages252
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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