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धौर वंशावलि.
श्रीसूरी प्रसन्न हुया | पं० माणचंद्रने प ठक पद देई १६३६ वर्षे श्रीचिंतामणी पास प्रतिष्ठया । पुनः श्रीलाहोरनी आज्ञा दीधी । एतलि श्री पाठकनई तपगछ रावणपास जुहारी दिल्ली नगर चौमासुं रही सं० १६३७ उद्योतकारक जांणि वाचक (१०४-२) प्रमुष एह वर्षे अकबर भूगल वंदावी आगरें मरुते आवी जालं. आशिर्वाद वचन कह ई। दुहा:
धरादिक (१०५-२) नगरई चौमासो कीधा । सर उदय दिनकर समई
श्रीसूरीनी कीर्ति सांभली याचक प्रमूत्र श्रीसूरीने ओपम चंद्रउदय निशि होत।
रुप (1) बीरुदावइ । होदोनु याके नामपर
हीर वइरागर नीप नई खीमसरारी खांण । सो गुरु सदा उद्यौत ॥ ? ।।
पातसाह प्रतिवाधिओ अकबर मानी आंण || १ || एहवई श्रीवड गछि चतुर्दशिक पक्ष पिप्पलिशाघाई श्री- श्रीसूरी अकबरदत्त जगद्गुरु बिरुद वारता, भिनमाल मालदेवई श्रीहारीज नगरें वि० सं० १६३५ वर्षे श्री- हुई रायधनपुर नगरई आव्या । तिहां स्वपाटि श्रीविजयहीरविजय सूरीने वंद्या । श्रीसूरीइं पिण पोताना गात्री सेन सूरी नाम प्रतिष्टयौ । आ० पद लही गुरु आण लही जांणि आदर देइ पासई राष्या । अनुक्रमई श्रीसूरीइं श्रीविजयसेन सूरी पाटणि सीरोहीइं बिहार कीयो । अने मालदेव सहित दीली नगरई पोहता । श्रीसूरीनइं पाति- श्रीगुरु अहिमदाबादि वरिपूर नगर आव्या। तिहांशाह कहें-बेठो । तब हीर कहे जीयत दिया बिछात उ- लुका गछि रु. मेवजी सतावीश शिष्यइं श्री सूरी द्धाइ देवइतो पा० मेवा धन्या हे तिणेसुं कीडी आइ (?) प्रतिवद्या । सरीई पिण तेहनी स्व शिष्य थापि कुशल, प्रथम दिन एता जीव हुंओ । बिजे दीन पातसाहीनो वर्द्धन, आनंद, सोभाग्य, ए यार शाषाई नाम दीधा बहुमान देषी बिछात नीचे धाडकर बकरी एक सगर्भा । श्री गुरु अढार शाखाई विस्तारे कही विचरता जंगम मांहि घाली दरीमाना कीयो । पातसाह कहई-बिजेहीर कल्पवृक्ष समान सोभई । अथ अष्टादश शाषा नाम-- बेठो | तदा हीर कहे इस जमीमें जीव हई । सा० श्रीमद विजय १, विमल २, सागर ३, चंद्र ४, हर्ष ५, कहई केता जीव । तदि गुरु कहें-तीन जीव हे । पात- सोभाग्य ६, सुंदर ७, रत्न ८, सुधर्म ९, हंस १०, साह खोलकर देषी तो १ बकरी २ बच्चा हुआ । सेो देष आनंद ११, वर्द्धन १२, सोम १३, रुचि १४, पातसाह कहें (१०५-१ )ए. दूसरा धूदा हई, सच्चे (१०६-१) सार; १५, राज १६, कुशल १७, पीर हो, तुम्ह अम्हारे गुरु होइसो | पातसाहनी सन्मान उदय १८, निरमल नाम | श्री सुरी खंबायति हई देषी म्लेछ मुल्लाणीया द्वेष धरी कहइं अबसे सच्चे फकीर गंधार बिंदिरई आव्या । तिहां गुरु उपदेश थकी सा. हई तो अल्लाकी बंदगीसे हजुर कर्छ करामत देषावई। रामजीई वि० सं० १६४९ वर्षे श्री वीर चउमुख से सांभली एक पातसाह मुल्लाणीया सहित श्रीसूरीने प्रासाद निपजाव्यो । चौमासि उतर्ये पतनई आव्या । सभाई आदर दई कहई आप अपणी करामत देखाओ एतलई श्री सरीई तिहां बारबोल प्रगट कीधा । तिहां तिवारि पिपीलिका र अजा भूमीगृह २ विकात ठिकाणे थकी श्री सूरी श्री सिद्धाचलि आव्या । एतलई तिहां कछै वली रजहरण १ टोपी २ वली अनेक वद्या करा- मवाड, वागड, मझधर, इंढाड, दक्षिण, गुजरात, मालव, मत देखी पा० तूटो थको कहि-तुम्ह बडे दर्शनी हो । सोरट, देवका पतन, प्रमुष सकल द्वि लक्ष मनुष्य इम कहीं सकलात्मीय देशिं पर्व आवीई आट दिन जल- वृंद सहित वि० सं० १६५० वर्षे महा
चर थलचर तीर्यच जीव प्रभूषनी आमारी पलावी, प्रव- महोत्सवि श्री सूरीइं श्री प्रथम तीर्थ करनों दर्शन त्तिावी । पुनः श्रीसिद्धाचले पातसाह मनुष्य मुंडकादि कीधी । तिहांबणा या चकने दान हुया । , द्रव्य लेता तेहनी माफी कीवी । अकबराग्रहि सं. मात्र, अष्टभेदी, सत्तर भेदी, अष्टोतरी, साधर्मिक वात्सल
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