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________________ जैन साहित्य संशोधक. [ भाग १ त्रुटित भागोने देवर्धिगणीए पोताने जेम योष टीकाओमां लीधेलो छे ते मूल टीकाकारोए निर्णीत लाग्युं ते प्रमाणे अनुसंधित करी एकत्र कर्या. करेलो पाठ छे. कल्पसूत्रना संबंधमां तो आ वात घणाक आगमोमां जे असंबद्ध अने अपूर्ण वर्णनो निश्चित छ, एम हु खात्रीपूर्वक कही शकुं छु. सूत्रोनी मळी आवे छे तेनु कारण मात्र आज कल्पना द्वारा जे जे टीकाओ अत्यारे विद्यमान छ ते सघळी आपणे समजी शकीए छीए. विद्यमान जैन आग- सीधी अथवा आडकतरीरीते प्राकृतमां रचाएली मोनी व्यवस्था-(रचना) मुख्यत्वे करीने एना प्राचीन चूर्णिओ अगर वृत्तिओना आधारे लखाएली संपादक देवर्द्धिगणीनेज आभारी छे. तेमणेज तेने अ. छे. ए चूर्णिओ तथा वृत्तिओ हालमां या तो नष्ट ध्यायो-अध्ययनोमां विभक्त कर्या, अने ग्रंथगणना(एटले थई गई छे, अथवा तो कचित् ज अस्तित्व धरावे ३२ अक्षरनो एक श्लोक एम श्लोक प्रमाण) नी पद्धति छे. प्राचीन टीकाकारोए मूळसूत्रो ने घणाज अव्यवदाखल करी. आ ग्रंथगणनाना हिसाबे, सो सो स्थित रूपमा जोयां हशे. कारण के तेमने तेना अगर हजार हजार श्लोकनी संख्यासूचक अंको, घणा पाठान्तरो नोंधवानी आवश्यकता लागी हती. हस्तलिखित प्रतिओमां सर्वत्र एकज रूपमां लख- आमांना घणांक पाठान्तरो पछीना टीकाकारोए वामां आवेला छे, रस्ताओना मापने माटे उभा पण पोतानी टीकाओमां टांक्यां छे. केटलाक टीका. करेला माईलना पथराओ जेवा आ संख्या-सूचक कारो फक्त एकज पाठ स्वीकारी ते उपरज टीका अंको मूकवानो उद्देश्य एज छे के मूळ सूत्रोमां पुनः करवानुं जणावे छे. उदाहरण तरीके उत्तराध्ययनसू. वधारा-उमेरा न थवा पामे. परंतु वास्तविकमां आ बना टीकाकार देवेन्द्रगणी लई शकाय. बीजा केटउद्देश्य सफळ थयो होय एम लागत नथी. लाक टीकाकारो पाठान्तरो जोवानी ईच्छावाळाने देवर्द्धिगणीना पछीना समयमां पण जैन आग. ते चूर्णी जोवानी भलामण करे छे. प्रमाण तरीके मोमां घणा फेरफार थया होवा जोईए. हालनी कल्पसूत्रना सौथी प्राचीन टीकाकार, के जेमनी हस्तलिखित प्रतोमा विविध पाठान्तरो मळे छ खरां, टीका मेळववा हुं शक्तिमान थयो परंतु, जुदी जुदी लेखन-पद्धतिने लईने तेनी छु, ते जिनप्रभमुनि लई शकाय. आ उत्पत्ति थएली छे. ते सिवाय ते वधारे उपयोगी कारणथी वर्तमान विवेचकोनो उद्देश तो मात्र के वधारे प्रमाणवाळा नथी. पण पुरातन समयमां प्राचीन टीकाकारोए जे सूत्रपाठ स्वीकार्यो हतो काईक जुदीज स्थिति होवी जोईए. कारण के तेनोज पुनरुद्धार करवानो होवो जोईए. साक्षात् टीकाकारोए पोतानी टीकाओमां अनेक पाठांतरोनो देवर्धिगणाए पुस्तकारूढ करेलो सूत्रपाठ तो आजे निर्देश करेलो छे, के जे हालना हस्तलेखोमां जोवा- मळवो अशक्य ज छे. मां आवतां नथी. आथी मारूं एम मानवं छे के देवगिणीना समय पर्यंतनी जैन साहित्यनी वर्तमानमा जे सूत्रपाठ मूळनी प्रतिओमां जोवामा अव्यवस्थित स्थिति उपरथी ए अनुमान पण करी आवे छे, तथा अवाचीन टीकाकारोए जेने पोतानी शकाय एवं छ के जे भाषामां ते पवित्र ज्ञान एक १ जेठ देवर्धिगणीना समय पर्यंत जैनो खरेखर बेदरकारी पेढीथी बीजी पेढिने आपवामां आवतुं हतुं तेमां थीज पोताना पवित्र धर्मशास्त्र-ज्ञान आपता रह्या हशे. कार- क्रमथी फेरफारो थता गया हता. जे भाषा महाणके, पूर्वोनो अमुक भाग तो महावीर पछीनी आठमी पेढिः वीर अने तेमना अनन्तर शिष्यो-अर्थात् गणधरो एज लुप्त थई गया हता. तमज दशमी पाढना पूर्वज सव बोलता ता ते तो खरेखर मगधदेशनीज भाषा पूर्वो नष्ट थयां हता. निदन जैन इतिहास तो आपणने एमज कहे छे हती. तेओ संस्कृतभाषा बोले ए तो असंभवितज छे. Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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