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अंक 1]
डॉ. हर्यन जेकोबीनी कत्पसूत्रनी प्रस्तावना. के उक्त महावीर इ.ब्द ते वर्धमान नामने माटे वप. आ सुधर्मा 'अग्निवैश्यायन' गोत्रना हता. दुर्भाग्ये, रायो छे, पण बुद्धने मांटे नहीं. ए शिलालेख उपर निगण्टनातपुत्तना सिद्धांतदर्शक सामञ्जफलसत्तना संवत्सर ९८ लखेलो छ, मथुरामां मळेला शिला- ते भागनो अर्थ स्पष्ट समजातो नथी. छतां पण तेना लेखोनी तारीखो कया संवत्ने उद्देशीने लखायली आनुपानिक भाषन्तर उपरथी, हुं कही शकुं छु के छे ते हजी नक्की थयं नथी; छतां पण कनिष्क अने 'निगण्ठनातपुत' ने महावीर तरीकेज गणवामां हुविष्कना नामनिर्देशथी एटलं तो सिद्ध थाय छे कोई पण प्रकारनो बाध आंच तेम नथी. डॉ० बुल्हरे के ते शिलालेखो ई० स० नी शरूआतना छे. पण एक कथाना आधारे महावीरने निगण्ठनातघुत्त वीजो परावो ए छे के बौद्धग्रंथोमां पण जैनधर्मना रूपे जे स्वीकार्या छ त हकिकत पण आ कथनन संस्थापकना संबंधमां केटलाक उल्लखो मळी आवे छे; पुष्टि आप छे. बौद्धधर्मना आत्मावतार(Hurdy. Manते उल्लेखो तेना-जैनधर्मना प्रवर्तकना-कोई सामा- ual of Buddhism p.271 ), वैश्यन्तर अने अन्यन्य नामना रूपमां नहीं पण 'निगण्ठनाथ' अथवा ग्रंथोमां एवो उल्ले व छे के निगण्ठनातपुत्ते पोताना 'निगण्ठनातपुत्त'ना विशेषनामना रूपमा छे. आपणे उपालिनामना एक शिष्य, के जेणे बौद्धधर्मनो अंगापहेलां जोई गया छीए के — निगण्ठ ' ए जैनयति. कार को हतो तेनी साथे कलह कर्या पर्छ। पावामां वाचक शब्द छ; अने 'नातपुत्त' ने हुं कल्पसूत्र अने काल को हतो. कल्पसूत्रप्रमाणे पण महावीरन देहाउत्तराध्ययनमां आवेला महावीरना 'नायपुत्त' बिरुद वसान पावामांज थरलु होवाथी, तेमज जैन यतिओ तरीके मान छु. नेपालना बौद्धग्रंथो निगण्ठनाथने निगण्ठो कहेवाता होवाथी, ए स्पष्टरीते सिद्ध थाय ज्ञातिना पत्र कहे छे ( Burnouf. Lotus de छे के 'निगण्ठनाथ' ए शब्द महावीर माटेज वपरायो la bonni loi p. 450), अने जैनो पण तेने छे. आ प्रमाणे बुद्ध अने महावीर ए बन्ने भिन्न • ज्ञातपुत्र' कहे छे. ( See Petersburgh परंत समकालीन व्यक्तिओ हती. आ उपरथी ए Dictionary S. V. Jnataputra ) वळी हेमचं. पण स्पष्ट छ के आ बन्ने धर्मोपदेशकोना निर्वाण द्रना परिशिष्ट पर्व १-३ वाळो नीचेनो श्लोक सर- समयमां थोडाकज वर्षोन अंतर होवु जोईए. हवे खाक्वा जेवो छे:
जनरल कनिङ्गहामे करेली अशोकनी त्रण नवी कल्याणपादपारामं श्रुतगङ्गाहिमाचलम् । आज्ञाओनी शोध उपरथी, अने डॉ. बुल्हरे ऐतिविश्वाम्भोजरविं देवं वन्दे श्रीज्ञातनन्दनम् ॥ हासिक अने भाषाशास्त्रनी दृष्टिए करेला तेमना
महावीरने आ नाम आपवानं कारण ए छ के अर्थालोचन उपरथी, बुद्धनो निर्वाण-समय ई. स. तेना पिता ज्ञातक्षत्रिय-ज्ञात जातिना क्षत्रिय-हता. पूर्व ४७७ ना अरसामां निर्णीत थयो छ, तेथी निगण्ठनातपुत्तने सामफलसत्तमां अग्निवैश्य'यन महावीर निर्वाणनो समय पण ई. स. पूर्वे ४९० गोत्रना लख्या छे. आ बौद्धलोकोनी भूल छे. अने ४६० नी वच्चे आववो जोईए. कारण के, महावीर तो गौतम गोत्रना हता. बौद्ध. श्वेताम्बरोनी परंपरानुसार महावीर-निर्वाणनो लेखकोए धर्मसंस्थापक अने तेमना मुख्य शिष्य सुध- समय विक्रम संवत् पहेलां ४७० वर्षे आवे छे, अने र्माने उलटपालट लखी दीधा छे. अर्थात् शिष्यनुं दिगम्बरोना मते विक्रमसंवत् पूर्व ६०५ वर्षे आवे गोत्र गुरुने लगाइयुं छे. जैन सूत्रोमां सुधर्माने महा- छे. आ बन्न संपादायोनी नोधाएली निर्वाणनी तारी. वीरना सिद्धान्तोना प्रवर्तक तरीके लख्या छ, के रवोमा जे १३५ वर्षनो तफावत जोवामां आवे छे ते जेमणे जंबूस्वामीने प्रथम सूत्रोपदेश आप्यो हतो, संवत् अन शक वच्चेना कालनी बराबर छ, अने
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