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अंक २]
डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोनी प्रस्तावना
ह्मण संप्रदायो आत्माने सर्व विश्वव्यापी माने छे; जन्ममां जीवात्माने भोगवां पडे छे ते; तेमज वळी, जेवी रीते बौद्धोनो असंख्य उपविभागात्मक संपूर्ण ज्ञान अने उत्तमचारित्र-के जेथी मनुष्य पञ्चस्कन्धवाद जैनोना अध्यात्मशास्त्रमा बिलकुल भवचक्रपरिभ्रमणनो अन्त लावी शके छे तेजणातो नथी, तेवी रोते जैनोनो अतिविस्तृत चेत- इत्यादि सिद्धान्तो लई शकीए. बीजो पण जैनो नवाद ( Hylozoistic theory ) जेवो सिद्धान्त अने बौद्धोनो एक समान विचार छ, जेनी अनुपण बौद्धोना तत्त्वज्ञानमा दृष्टिगोचर थतो नथी. सार एम मानवामां आवे छ के अनादि काळथी जैनोनो ए सिद्धान्त तेमना संपूर्ण तत्त्वज्ञान अने तीर्थंकरो अने बुद्धो एकज प्रकारना सिद्धान्तो प्ररूआचारशास्त्रमा ओतप्रोत थएलो जोवामां आवे पता आव्या छे तथा नष्ट थता धर्मने पुनर्जीवित छ; अने ए सिद्धान्तानुसार प्राणी अने वनस्पति उप- करता आल्या छे. ए विचार पण ब्राह्मणोना विष्णुरान्त पृथ्वी, जल, तेज अने वायु जेवां तत्त्वोनां सूक्ष्म- ना अवतारोवाळा विचार साथे मळतो आवे छे. मां सूक्ष्म अणुओ सुद्धांने चेतनायुक्त मानवामां आवे परंतु, ते उपरांत, जैन अने बौद्ध ए बन्ने धर्मना एक छे. भारतवर्षना सघळा तत्त्वज्ञानिओए सर्वज्ञता अत्यावश्यक प्रयोजनरूपे पण आ विचारनी सधीनी ज्ञाननी जदी जुदी तरतमताओ-पायरीओ उत्पत्ति थपली समजाय छे. कारण ए छे के बुद्ध ने एक अति महत्त्वमो विषय मान्यो छे. तदनुसार अगर महावीरे जे कांई प्रतिपादन कर्यु हतुं तेने जैनो पण आ विषयमा पोतानो एक स्वतंत्र मत तेमना अनुयायिओ सत्य --एकमात्र सत्य मानता धरावे छे. अने ए विषयनी तेमनी परिभाषा पण हता. हवे आ सत्यने पण ब्राह्मणोना वेदनी माफक ब्राह्मग अने बौद्धोथी तद्दन जुदाज प्रकारनी छे ते. अनादि काळथीज आस्तित्व धरावतुं मानवू जोईए. ओए ज्ञानना नीचे प्रमाणेना पांच प्रकारो मानेला कारण के जो एम न मानवामां आवे तो प्रश्न थरी छे:--- (१) मति-सम्यग् अवबोध; (२) श्रुत-मति के शुं आ सत्य तीर्थकरोना अवतारनी पूर्वे व्यतीत बाद थपलुं स्पष्ट ज्ञान; (३) अवधि-एक जातनं थई गएला अनंत काळ सुधी मात्र अज्ञातज रहधुं अतीन्द्रिय ज्ञान; (४) मनः पर्याय-परकीय विचा- हतुं ? आ प्रश्नना उत्तरमा दरेक श्रद्धाळु जैन अगर रानु विशद् शान; (५) केवल-सर्वोत्कृष्ट प्रकारनं बौद्ध एमज कहश के नहीं एम बनवं तो तइन अथवा संपूर्ण ज्ञान. जैनोनो आ एक मौलिक आ. अशक्य छे. ते तो एमज कहेशे के आ सत्यधर्मनी ध्यात्मक सिद्धान्त छ, अने ए सिद्धान्त तीर्थक. उपदेश भिन्न भिन्न काळमां उत्पन्न थएला एका रोनां चरित्रो लखती वस्वते लेखकोना मगजमां असंख्य तीर्थकरो तथा बुद्धो द्वारा हमेशां अपातो हमेशां प्रधान पणे रमी रहे छे. आ प्रकारनो सि- आव्यो छे अने भविष्यमा पण तेवी ज रीते अपातो द्धान्त बौद्धग्रन्थोमां बीलकुल जोवामां आवतो नथी. रहेशे. आ प्रमाणे भूतकालमां अनेक धर्मप्रवर्तको ए सिवाय बन्ने संप्रदायोना मुख्य सिद्धान्तो वच्चे थई मयानो आ बन्ने धोनो विचार-सिद्धान्त पीजा पण एवा घणा भेदो बतावी शकाय तेम छे. न्यायशास्त्रानुसार एक अत्यावश्यक प्रयोजवरूपे छे. परंतु ते बधानुं वर्णन वाचतां कदाच वाच- बळी जैनांना आ विचार-सिद्धान्तने प्रमाणशूकने कंटाळो आवे तेवा भयथी अमे आटलेथी ज य ठरावी शकाय तेम पण नथी. कारण के बौद्ध विरमीए छीए.
ग्रंथोमां कोई पण स्थळे निग्रंथोने एक नवीन उत्पन्न जैनोना जे केटलाक सिद्धान्तो बौद्ध सिद्धान्तो थएला संप्रदाय तरीके अथवा तो नातपुत्तने तेना साथे मळता आवे छे ते तो ब्राह्मणधर्ममां पण संस्थापक तरीके वर्णवामां आव्या नथी. तेथी समान छे ---उदाहरण तरीके पुनर्जन्मनो सिद्धान्त बुद्धना समयमा निग्रंथोनो संप्रदाय, ते प्रायः एक अर्थात् मरण पछी फरीथी जन्म धारण करवो ते; प्राचीन संप्रदायज मनातो हतो, एम सिद्ध थाय कर्मनो सिद्धान्त अर्थात् पूर्वकृत कर्मोना धर्मा- छे. तेमज नातपुत्त ते, घणुं करीने पार्श्व नामे तेधर्मरूपी परिणामो आ भवमां अगर आगामी वीशमा तीर्थकर द्वारा स्थापित भएला जैन धर्मना
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