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अंक २] .
डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोनी प्रस्तावना प्रकारनां कष्टोसहन कर्या हता. 'तेमणे देव, मनुष्य ग्रंथोमां पण मळी आवे छे; एम आपणे अहीं जणा. अने तियेच जनित अनेक अनुकूल तेमज प्रतिकृल ची शकीशु. बनायो समताथी सहन कर्या, खम्या तमा अनम- ब्राह्मण संन्यासिजीवननां उपकरणो तरीके व्या हता' इत्यादि. जेनयतिना संबंधमां एम पण 'दण्डी (यष्टिकाओ), रज्ज, पाणी गाळवामाटे वारंवार कहेवामां आवे छे के ते पाताना आध्या- वस्त्र खंड, जलपात्र अने भिक्षापात्र छ.' जैन साधुत्मिक जीवननी चरम अवस्थामां मरण या जीवित ओ पण दण्डो राखे छ-अत्यारे तो अवश्य राख छे. ए बन्नेमां निराकांक्षी होय छे.'
परंतु बोद्धो तरफ दृष्टि करतां, पिटकोमा एवो एक बौधायने आपेला बीजा केटलाक नियमो पण पण उल्लेख मारा जोवामां आव्यो नथी के जेमां जैनोना आचारो साथे घणाज मळता आवे छे. जे- यष्टिका राखवा माटे स्पष्ट विधान करवामां आव्यु मकः-' तेणे वचन, विचार अने कर्म ए त्रणे प्रका- होय. रनां कष्टदायक साधनो द्वारा कोई पण सर्जित . जैन साधुओ पण ब्राह्मण संन्यासिओनी माफजीवनी हिंसा करवी जोईप नहीं." आ नियम जै- क भिक्षापात्र अने तेने बांधवानी एक दोरी तथा जल
:) नु एक स्पष्टी. पात्र राखे छ: पाणी गळवा माटे वस्त्रखंड अने करण मात्र छ । 'कादायक साधनाने' जैनो रजोहरण आबे वस्तुओ राखवा संबंधी उल्लेख तो शस्त्र कहे छे.
आनी पहेलां ज आपणे करी आव्या छीए. जैन __ 'तेणे शौचादि कर्म माटे अपोक्षित जळने गळवा साधुन जो कोई पण एवं खास उपकरण होय के सारु वस्त्र राखयुं जोईप ' 'तेणे ( आवश्यक) शौः जे अन्य संन्यासिओपासे नहीं देखातुं होय, ते त चादि ( कुवा अगर तळावमांधी ) काढेला अने मनी एक मात्र मुखवस्त्रिका ( मुहपत्ती ) छे. आ गळेला पाणीथी करवां जोईए.' आ नियमोनुं जैन बधी हकीकत उपरथी जणाशे के जैनोनां घणां खरां साधुओ यथार्थ पालन करे छे. तेओ पाणी गळ- उपकरणो, तेमना माटे आदर्शरूप बनेला एवा ब्राह्मवा माटे खास वस्त्र राखे छे. टीकाकार गोविन्द, ण संन्यासिओ अगर भिक्षुओनां जेवांज छे. आ पवित्र,-एटले पाणी गळवाना वस्त्रखंडनो अर्थ 'तेणे तेज अन्न लेबु जोईप के जे बिना माग्ये 'मार्ग उपरथी जंतुओने दूर करवा माटे राखेलो मळेलु होय, जेना संबंधमा पहेलां कोई व्यवस्था कुश जातना तृणनो एक गुच्छ,' एम करे छे. थएली न होय, जे अकस्मात्ज मळी गयु होय, गोविन्दनो बतावेली आ अर्थ जो यथार्थ होय अने अने जे फक्त पोताना जीवितने टकाववा पूरतुं तेना प्रमाणमा जो कोई साची अने प्राचीन परंपरा ज होय.” रहेली होय-अने ते मारा मानवा प्रमाणे तो अवश्य जैनधर्मना 'भिक्षाचर्याना नियमो' वांचवाथा होवाज जोईए...तो जैन साधुओ मार्गमा चालती सहजे जणाई आवे तेम छ, के, ब्राह्मण संन्यासिओ वखते बच्चे आवता तथा सती वखत नीचे आव- माटे अन्नग्रहण करवा संबंधी जे जातना नियमानुं. ता जीवजंतान दूर करवा माटे जे रजोहरण अ- बौधायने उपर प्रमाणे विधान कर्यु डे, तेज प्रका थवा पादप्रोग्छन राखे छे, तेनुं प्रतिरूप ब्राह्मण रना नियमो प्रमाणे मळेला आहारने जैनोर पण
'शुद्ध अने ग्राह्य' मान्यो छे. बौद्धो आ विषयमा १. आचारांग सूत्र १, ८, ३,१.
आटला बधा सख्त नधी. तेओ तो खास करीने २ कल्पसूत्र, जिन चरित्र, ११७, तिमभाग. ३. उदाहरण तरीके कल्पसूत्र सामाचारी ५१.
बौधायन २,१०, १७, ११. ४. बौधायन २, ६, ११, २३.
२. जो के भिक्षापात्र उपरांत साधुने जलपात्र राखवानी ५. आचारांग सूत्र, पृ. १, नोट २.
पण छट आपेली छे खरी तथापि एकज पात्र राखवे अधि६. बौधायन २, ६, ११,२३.
क उत्कृष्ट मनाय छे. ७. जुओ प्रो. बुल्हरनुं भाषांतर पृ. २६०, टिप्पण,
३. बौधायन २,१०.१८, १३.
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