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________________ ७० जैन साहित्य संशोधक [माग. कता अने प्रतिष्ठाने पात्र छे ते पुरवार करी आपीश. कोना इष्टिकागृहमां उतर्या हतां. आ स्थाननी आपणे आपणी चर्चानो प्रारंभ महावीर विषयक नजीकमांज अम्बापाली वेश्यानुं अम्बपालिवन ऊहापोहथी करीशु के जेओ जैनधर्मना संस्थापक, नामर्नु उद्यान हतुं, जे तेणे बुद्ध अने तेमना संघने निदान तेना आतम तीर्थकर हता. अहीं मारे समर्पित कर्यु हतुं. त्यांथी तेओ वेसाली गया, अने जणावी देवं जोईप के, महावीर एक अर्वाचीन सं- त्यां लिच्छविओना सेनापतिने, जे निग्रंथो प्रदाय द्वारा उभो करेलो अथवा कल्पी लीधेलो नो एक श्रावक हतो, पोताना धर्मनो अनुमात्र सांकेतिक पुरुष छे, के जे संप्रदाय पोताना यायी बनाव्यो. आ उपरथी बौद्धोनु कोटिग्गाम कल्पित संस्थापकना मिथ्याकाल पछी घणी शता- अने जैनोनुं कुण्डग्गाम ए बन्ने एकज होय तेम ब्दिओ बाद उत्पन्न थयो हतो, ए जातना भ्रमने दूर घणुंज संभवित लागे छे. नामना साम्य उपरांत जा. करवा माटे पुरतुं साहित्य मळी चूक्यु छे. तिकोनो उल्लेख के जे ज्ञातिको स्पष्टरूपेमहावीरनी श्वेतांबर तेमज दिगंबर-ए बने जैन संप्रदायो जन्मजातिवाळा झात क्षत्रियो जछे-तथा सीह जणावे छे के महावीर कुण्डपुर अथवा कुण्डग्रामना नामना जैननो उल्लेख पण एकज बाबत तरफ राजा सिद्धार्थना पुत्र हता. जैनोनी एवी मान्यता अंगुली निर्देश करे छे. के के आ कुण्डग्राम ते एक मोठं नगर हतुं तथा आ उपरथी घणु करीने कुण्डग्गाम ए विदेहनी सिद्धार्थ ते एक त्यांनी प्रतापी राजा हतो. परंतु राजधानी वेसालीचें एक मात्र पकंज हतुं. आ अनु. कपिलवस्तु अने शुद्धोदनना संबंधमां बौद्धोना मानने, सूत्रकृताङ्ग १, ३ मां महावीरने जे 'वेसाकथननी माफक, जैनो, पण आखरी वस्तुस्थितिनुं अर्थना विषयमा टीकाकारो तथा अर्वाचीन भाषांतरकारोनी अतिशयोक्ति द्वारा करापलं एक मिथ्या क- गेरसमजुती थई होय तेम लागे छे. महापरिनिब्बान सुत्तना थन छे. कुण्डग्रामने आचारांगसूत्रमा एक संनिवेश भाषान्तरमा (S. B. E. Vol.. XI ) राइझ डेविड्स, तरीके जगावेलुं छे के जेनो अथे टीकाकारे 'या. २४ नो नोटमा. आ प्रमाणे लखे छे:-प्रथम 'नादिक' त्रिओ अथवा सार्थवाहानुं विश्रामस्थान' एम शब्द बे वार बहुवचनमा वपरायो छे–'परंतु त्यार पछी करेलो छ. आ उपरथी जणाय छे के ते (कुण्ड- नीजी वार-एटले छेल्ला अवान्तर वाक्यमां ते एक वचग्राम) एक नजीबुं स्थान हशे. तेना संबंधमा मात्र नां वपरायो छे. आनो खुलासो बुद्धघोष आम करे छे-'ए एटलोज संप्रदाय मळी आवे छे के ते विदेहमां नामना जलाशयना काठा उपर एज नामनां बे गामडां आवेलं हतुं (आचारांग सूत्र २, १५६. १७.) बौद्ध हता.' परंत मारा धारवा प्रमाणे बहुवचनमा प्रयुक्त थरल तेमज जैन ग्रंथोमा प्रसंगे प्रसंगे मळी आवता जातिका शब्द तो क्षत्रियोनो वाचक छे, अने एकवचनी उलेखो उपरथी महावीरनी जन्मभामिना स्थानना शब्द गिजकावसथ' न विशेषण छ, जे महापरिनिब्बान आपणे योग्य निर्णय करी शकीए तेम छीए. बौ.. सुत्तमा प्रथम स्थान निर्देश वखते, तथा महावग्ग ६, ३., सोना महावग्गसूत्रमा आपणे वांचिए छीए. के बुद्ध ५ मां. आवे छे. आधी महापरिनिब्बानमा जे जे स्थळे ज्यारे कोटिग्गाममा वसता हता त्यारे तेमने, ते नादिक शब्द एकवचनान्त होय त्या त्या तेना — गिजका स्थाननी पासे आवेली वैशालीनामे राजधानी- वस विशेष्यने अध्याहृत मानवु जोईए. मारा मत प्रमाणे मांथी लिच्छविओ तथा अम्बापाली नामनी वेश्या नाटिक' एक्ष्प खोटु छे अने महापरिनिब्बान नुं 'आतिक' मळवा आवी हती. कोटिग्गामथी बुद्ध ज्या आ- पखरू छे. मि. राइझ डेविड्झे पण भाषान्तरनी अनुक तिको रहेता हता त्यां गया हता, अने त्यां तेओञाति- मणिकामा ' नादिक ए पटना पासे छे' एम जे जणाव्यं छे ते भलभरेलुं छे. कारण के महावग्गनी कथा उपरथी १ ओ आल्डनबर्गनी आवृत्ति पृ. २३१, २३२; स्पष्ट जणाय ठेके आ स्थान तथा कोटिम्गाम ए बन्ने स्थळे भाषांतर(बीजो भाग) पृ. १०४. Sacred Books of वेसालिनी नजीकमा हता. the East, Vol. XVII. १ जुओ - वेबर, Indische Studien, XVI २ जे पूत्र' जालिका ' शब्द आवेको छे ते सूत्रना p. 262. Aho! Shrutgyanam
SR No.009877
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Khand 01 Ank 01 to 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year1922
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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