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अंक २ ]
कुमारपाल प्रतिबोध परिचय
जवा पुरतुं ज्ञान धरावनारा अने मक्षिकास्थाने मक्षिका चितरनारा लहिआओ पासेथी ए कार्य कराववामां आवतुं हतुं. तेथी जना ग्रंथोनी नकलो करतां ए वखते लहिआओना हाथे घणी अशुद्धिओ ते ग्रंथोमां दाखल थई गई हती. आज कारणने लईने कुमारपाल प्रतिबोधना प्रकृत आदर्शमां पण लेखन - अशुद्धि ओ. घणा मोटा प्रमाणमां प्रविष्ट थई गएली जोवाय छे. आ पुस्तकनी नकल करनार कायस्थ पेतानं भाषाज्ञान केधुं हशे तेनुं अनुमान, पुस्तकना अंतमां तेणे जे संवत् विगेरेना उल्लेख वाळो पुष्पिकालेख लेख्यो छे, ते उपरथी थई शके तेम छे.
उल्लिखित ताडपत्र सिवाय एक बीजुं पण ताडपत्र प्रस्तुत ग्रंथनुं मने मळ्युं छे, जे पाटणना संघवीना पाडाना नामे ओळखाता पुस्तकभंडारनी मालिकीनुं छे. ए ताडपत्र, उक्त ताडपत्र करतां खास जूनुं अने विशेष शुद्धरीते लखाएलुं छे. परंतु ए घणु ज अपूर्ण--खंडित छे. एमां ५१ थी ते ३०५ नंबर सुधानां पानां छे. आ ग्रंथना चतुर्थ प्रस्तावमां देशावकासिक व्रतोपरि जे पवनंजयनी कथा आपली छेतेना मध्यभागथी ज ए ताडपत्र खंडित थई गयुं छे. एनी साईझ २७+२" लांबी-पहोळी छे. प्रत्येक पृष्ठमा ३ थी ५ लाइनो आवेली छे, अने दरेक लाइनमां १०५ थी १२० सुधी अक्षरो लखेला छे.
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आवी रीते प्रस्तुत पुस्तकनो अखंड एवो एक ज उपर्युक्त आदर्श मने मळवाथी ( अने ज्यां सुधी हुं जाणी शक्यो छं, बीजो संपूर्ण प्राचीन आदर्श अन्यत्र क्यांये छे पण नाह) अने ते पण विशेष अशुद्ध होवाथी, आ ग्रंथना संशोधननुं काम मारा माटे घणुं ज कठण थई पडधुं हतुं.
सोमप्रभाचार्य
ग्रंथकार सोमप्रभाचार्य एक सुप्रसिद्ध अने सुज्ञात जैन विद्वान् छे.
तेमणे प्रस्तुत ग्रंथ विक्रम संवतू १२४१ मां, एटले कुमारपाल राजाना मृत्यु पछी मात्र ११ वर्षे बनाव्यो हतो. आ उपरथी तेओ राजा कुमारपाल अने आचार्य हेमचंद्रना समकालीन हता ए स्वतः सिद्ध छे. तेमणे आ ग्रंथ, नेमिनागना पुत्र श्रेष्ठ अभयकुमारना हरिश्चंद्रादि पुत्र अने श्रीदेवी आदि पुत्रिओनी प्रीत्यर्थे, प्राग्वाटजातीय कविचक्रवर्ती श्री - श्रीपालना पुत्र कवि सिद्धपालनी वसति (जैन मंदिर या जैन उपाश्रय ) मां रहीने रच्यो छे; तथा खुद हेमचंद्राचार्यना महेन्द्रमुनि', वर्धमानं अने गुणचंद्र नामे विद्वान् शिष्योए तेने अथथी ते इति सुधी सांभळ्यो छे. अभयकुमार श्रेष्ठी, आ ज ग्रंथमां जणाच्या प्रमाणे, कुमारपाल राजाए अनाथ अने असमर्थ जनोना भरण पोषण माटे खोलेला सत्रागार आदि धर्मादाय खाताओनो उपरी हतो. ( जुओ पृष्ठ २१९-२० ). कविचक्रवर्ती श्री - श्रीपाल गुजरातनो एक सर्वश्रेष्ठ कवि अने सिद्धराज जयसिंहनो घणो मानीतो तेमज स्वीकृत भ्राता हतो. तेनो पुत्र सिद्धपाल पण उत्तम कोटिनो कवि होई कुमारपाल राजानो प्रीतिपात्र अने श्रद्धेय सुहृद् हतो. आ कविकुलना संबंधमां में अन्यत्र सविस्तर लख्युं छे, (जुओ द्रौपदी स्वयंवर नामे सिद्धपाल पुत्र कवि विजयपाल रचित नाटकनी मारी प्रस्तावना. ) तेथी अहीं पुनरावृत्ति करतो नथी. श्रीपाल कवि, सोमप्रभाचार्यना पूर्वाचार्य देवसूरिनो चरणोपासक हतो तेथी एकवि- कुटुंबनो, तेमना शिष्यसमुदाय उपर सविशेष अनुराग होय तथा ते साधु-समूहनो पण एकुटुम्ब उपर विशेष आदरभाव होय ते स्वाभाविक छे. सोमप्रभाचार्यना गुरुओ तथा अन्य साधुओ अणहिलपुरम घं करीने ए कविकुटुंबना मकानोमां ज निवास करता हता. सोमप्रभाचार्ये पोतानो बीजो बृहदूग्रंथ नामे सुमतिनाथचरित्र पण एकुटुंबनी वसतिमां ज वसीने बनाव्यो हतो.
१ आ महेन्द्रमुनिए हेमचंद्राचार्यरचित अनेकार्थनामसंग्रह नामक कोष उपर अनेकार्थकैरवाकरकौमुदी नामे टीका छे, जुओ, पीटर्सन रिपोर्ट १, पृ. ५१.
२ वर्धमानगणिए कुमारविहारप्रशस्ति बनावी छे. - जुओ, पीटर्सन रिपोर्ट ३, पृ. ३१६.
३ गुणचन्द्रगणिए, प्रबन्धशतकर्तृ महाकवि रामचन्द्रने नाट्यदर्पण नामक ग्रन्थ लखवामां सहायता करी हती.
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