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अंक २ ]
होगया, जिससे उनके अधिकारयुक्त अभिप्रायसे आपका यह ग्रन्थ वञ्चित रहा । परंतु, दूसरे विद्वानोने आपकी इस कृतिका भी खूब सत्कार किया। बोस्टन विश्वविद्यालयके अध्यक्ष डॉ. वारिनने इस पुस्तक के विषय में कहा था कि " इन्डो-इरानी वि द्वानोंने जितनी पुस्तकें इस विषयपर आजतक लिखी हैं उन सबमें यह पुस्तक अधिक निश्चयात्मक है । जो कोई स्वर्गीय मि. नील की 'देव रात्रि ( The night of Gods ) का और इस पुस्तकका पारायण कर लेगा वह संभवतः फिर कभी यह न पूछेगा कि आर्योंका आदिम निवासस्थान कहां है । "
शोकसमाचार
आपको जब सन् १९०८ में तीसरी बार जेलयात्राका हुक्म हुआ तब मंडाले के एकान्तवास में बैठ कर आपने वह गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र
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लिखा, जो आज भारत के प्रत्येक धर्मजिज्ञासु जनके घरमें विराजमान हो रहा है तथा प्रत्येक विद्वान् और विद्यार्थी के लिये एक अत्यावश्यक पाठ्य ग्रंथ बन रहा है । इस ग्रन्थ में आपने अपने जीवनके समग्र विचार स्रोतों को एकत्र कर शास्त्र रूप महासरोवरके रूपमें बद्ध कर दिया है । पूर्वीय और पाश्चात्य तत्त्वज्ञानकी सभी मुख्य मुख्य विचारश्रेणियोंका गंभीर मन्थन कर आपने इस अमूल्य ग्रन्थरत्नको प्रकट किया है। आपके नामको अजरामर बनानेवाला केवल यही एक ग्रन्थरत्न प
है ।
आपके देह विलय से संसारका एक श्रेष्ठ और प्रखर ज्योतिःपूर्ण ज्ञानस्वरूप महानक्षत्र अस्त हो गया ।
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