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ज्ञानप्रदीपिका। धातुमूलञ्च जीवञ्च वंशं वर्ण स्मृति वदेत । कंटकादिचतुष्केषु स्याच्छत्रुमित्रग्रहर्यते ॥४॥ दृष्टे वा सर्वकार्याणां सिद्धिं ब्रूयाच चिंतनम् । x x x x x x x x x x x x x x xxx धातु, मूल और जीव राशियों पर से वंश, वर्ण और स्मृति बताना चाहिये। बिचार करते समय कण्टकादिलग्न चतुष्टय आदि तथा शत्रु मित्र राशि और ग्रह का पूर्ण विचार कर सिद्धि बतानी चाहिये।
उदये धातुचिंता स्यादारूढे मूलचिंतनम् ॥५॥ छत्रे तु जीवचिंता स्यादिति कैश्चिदुदाहृतम् । केन्द्र फणपरं प्रोक्तमापोलीवं क्रमात्रयम् ॥६॥
चिन्ता तु मुष्टिनष्टानि कथयेत्कार्यसिद्धये जा लग्न से धातु-चिन्ता, आरूढ़ से मूलचिन्ता और छत्र से जीवचिन्ता की जाती है ऐसा कुछ लोग मानते हैं। केन्द्र, (१, ४, ७, १०) पणफर ( २, ५, ६, ११) आपोक्लोव (३, ६, ६, १२,) ये क्रम से हैं, इन पर से नष्टमुष्टि आदि का विचार किया जाता है।
इति धातुकाण्डः
तत आरूढगे चन्द्रे न नष्टं रुक च शाम्यति । आरूढादशमे वृद्धिश्चतुर्थे पूर्ववद्वदेत् ॥१॥ नष्टद्रव्यस्य लाभश्च सहानिश्च सप्तमे। उदयाद्वादशेषष्ठे अष्टमारूढगे सति ॥२॥ चिंतितार्थो न भवति धनहानिदि पवलम् । तनं कुटुम्ब सहजं मातरं जनकं रिपुम् ॥३॥ कलत्रं निधनं चैव गुरु कर्म फलं व्ययम् ।
दृष्टे विधिक्रमाद्भावं तस्य तस्य फलं वदेत् ॥४॥ चन्द्रमा यदि आरूढ़ राशि में होतो उत्तर इस प्रकार देना-वस्तु नष्ट नहीं हुई, रोग शान्त है,-आरूढ़ से दशम में हो तो बढ़ गया है, चतुर्थ में हो तो नष्ट वस्तु मिल गई, या स्थिति
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