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ज्ञानप्रदीपिका। सौम्ये खेटेऽडजाः सौम्याः ऋरगाः इतरे खगाः ॥१४॥ उच्चराइयुदये सूर्ये दृष्टे भूपास्तदाश्रिताः । उच्चस्थाने स्थिते राजा मंत्री स्वक्षेत्रगे स्थिते ॥१५॥ राजाश्रिता मित्रभरता (2) वीक्षिते समये भटः ।
अन्यराशिषु युक्तेषु दृष्टे वा संकरान्वदेत् ॥१६॥ सौम्य ग्रह में सौम्यपक्षो और क्रूर ग्रह में क्रूर जानना चाहिये। सूर्य अपनी उच्च राशि में उदिन हो, और शुभ ग्रह से दूष्ट हो तो सम्राट्-उच्च में राजा, स्वक्षेत्रग होने से मंत्री, मित्रगृह में मित्र दृष्ट होने से राजश्रित योद्धा कहना चाहिये। अन्य राशि से युक्त और दृष्ट होने से संकर बनाना चाहिये।
कंस-कारकुलालश्च कंसविक्रयिणस्तथा।
शंखच्छेदी धातुपूर्णान्वेक्षिणश्चर्णकारिणः ॥१७॥ कांसे का काम करने वाला, कुम्हार, कांसा का बेंचने वाला; शंखछेदी, धातु चने का देखने वाला, चूण करने वाला
नृराशी जोवदृष्ट च भानुवटु ब्राह्मणोदयः। . कुजयुक्तेऽथवा दृष्टे वणिजः परिकीर्तितः ॥१८॥ बुधयुक्तेऽथवादृष्टे तब्रूयात् तपस्विनः । तदवच्छषु वृषलाः शंकरा शशिभोगिनौ ॥१६॥
किश्चिदत्र विशेषोक्तिर्मीनभारककिंकराः। यदि मनुष्य राशि में सूर्य हो और वृहरपति से दृष्ट हो तो ब्राह्मण बताना। कुज ( मंगल ) से युक्त किंवा दुष्ट हो तो वनिया बताना, बुध से युत या द्रुष्ट हैं। तो तपस्वी शक से युक्त या दृष्ट हो तो शूद ओर वर्णसंकर । मीन राशि चंद्र और राहु से यक्त या दृष्ट हो तो भारवाहक और किंकर बताना।
चन्द्रस्य भिषजो ज्ञास्य वैश्यश्चौरगणाः स्मृताः ॥२०॥ नर राशि में सूर्य यदि चंद्र से दृष्ट या युक्त हों तो वैद्य और बुध से वैश्य और चोर बताना चाहिये।
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