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ज्ञानप्रदीपिका ।
मेषकर्कितुलानकाः धातुराशय ईरिताः ॥ ५६ ॥ कुंभसिंहालिवृषभाः श्रूयंते मूलराशयः । धनुर्मीनृयुक्कन्या राशयो जीवसंज्ञकाः ॥५७॥
मेष, कर्क, तुला और मकर ये धातुराशियाँ हैं । कुंभ, सिंह, वृश्चिक और वृष ये मूलराशियाँ हैं । धनु, मीन, मिथुन और कन्या ये जीवराशियाँ हैं
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कुजेंदुसौरिभुजगा धातवः परिकीर्तिताः ।
मूलं भृगुर्दिनाधीशौ जीव धिषणसौम्यजौ ॥ ५८ ॥
इसी प्रकार मंगल, चन्द्रा, शनि और राहु ये धातु ग्रह, शुक्र और सूर्य मूल ग्रह बुध और बृहस्पति ये जो ग्रह हैं ।
स्वक्षेत्रभानुरुच्चंद्रो धातुरन्यश्च पूर्ववत् । स्वक्षेत्र भानुजो वल्ली स्वक्षेत्रधातुरिन्दुजः ॥ ५६ ॥ (१)
विशेषता यह है कि, सूर्य अपने गृह का, और चन्द्रमा उच्च का धातु होते हैं' | शनि स्वक्षेत्र में मूल और बुध स्वक्षेत्र में धातु होता है, शेष ग्रह पूर्ववत् ही रहते हैं । ताम्रो भौमपुश्च कांचनं धिषणो भवेत् । रौप्यं शुकः शशी कांस्य: अयसं मंदभोगिनौ ॥ ६० ॥
मंगल, तामा, बुध त्रपु (पीतल ? ), गुरु सोना, शुक्र चांदी, चंद्रमा कांसा, शनि राहु लोहे होते हैं ।
और
भौमार्कमंशुकास्तु स्वस्व लोहस्वभावकाः । चन्द्रज्ञगुरवः स्वस्वलोहाः स्वक्षेत्रमित्रः ॥ ६१ ॥
मिश्र मिश्रफलं ज्ञात्वा ग्रहाणां च फलं क्रमात् ।
मंगल सूर्य शनि शुक्र ये अपने २ भाव में लौइकार के होते हैं, चन्द्रमा बुध बृहस्पति अपने क्षेत्र तथा मित्र क्षेत्र में होने से लौहकारक कहे गए हैं। मिश्र में मिश्रित फल का आदेश क्रम से करना चाहिये ।
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