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(ज) वहाँ पर सन्दिग्ध पाठ को छोड़ कर भवन की प्रतिका या स्वतन्त्र शुद्ध पाठ रखने की ही
चेष्टा की गयी है। इसी से मूल पाठ और अनुवाद में सर्वत्र एकीकरण होना असंभव है। ___ अस्तु मैं अब विज्ञ पाठकों का विशेष समय नहीं लेना चाहता हूँ। आगे इस प्रन्यमाला में श्रीमान् बाबू निर्मल कुमार जी की शुभभावनानुकूल हो “वैद्यसार" "अकलङ्क संहिता” (वैद्यक) “प्रायज्ञान-तिलक” (ज्योतिष) ये अपूर्व मौलिक जैन प्रन्थ क्रमशः प्रकाशित होंगे। वैद्यसार का अनुवाद जारी है। इसके अनुवादक आयुवेदाचार्य पण्डित सत्यन्धर जी जैन काव्यतीर्थ छपारा हैं। आप का कहना है कि यह प्रन्थ बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है
और इसमें करीब डेढ सौ प्रयोग प्रातःस्मरणीय प्राचार्यप्रवर पूज्यपाद जी के हैं। इसका कुछ विशेष परिचय मुरादाबाद से प्रकाशित होने वाले सर्वमान्य पत्र “वैद्य” में शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
पूर्व निश्चयानुसार “चन्द्रोन्मीलन प्रश्न" ज्योतिष ग्रन्थ को भी प्रकाशित करने का विचार पहले था। परन्तु इसकी शुद्ध प्रति के अभाव से इस विचार को अभी स्थगित करना पड़ा।
अन्त में विज्ञ पाठकों से मेरा यही नम्र निवेदन है कि इस साहित्यसेवा कार्य में समुचित सहायता प्रदान कर इस ग्रन्थमाला के सञ्चालक श्रीमान् निर्मल कुमारजी का उत्साह बढ़ायेंगे कि जिससे समय समय पर भवन से उत्तमोत्तम ग्रन्थ रत्न प्रकाशित होता रहे।
शान्तिः! शान्तिः !! शान्तिः !!!
भवन-फाल्गुन कृष्ण पञ्चमी रविवार | वि० सं० १९६० वीर सं० २४६०
साहित्य सेवकके० भुजबली शास्त्री
पुस्तकालयाध्यक्ष।
Aho ! Shrutgyanam