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( १६ )
जिसके अंगूठे के पास वाली अंगुली पृथ्वी को न छुए वह स्त्री कुमारी तथा यौवनाter में दूसरे पुरुषों के साथ व्यभिचार करती है, इसमें सन्देह नहीं ।
पादमध्यमिका चैव यस्या गच्छति उन्नतिम् । वामहस्ते ध्रुवं जारं दक्षिणे च पतिं तथा ॥ २३ ॥
जिसके पैर की बिवली अंगुली पृथ्वी से ऊपर रहे वह स्त्री, में जार को और दाहिने में पति को लिये रहती है ।
निश्चय ही, बांये हाथ
उन्नता पिण्डिता चैव विरलांगुलिरोमशा । स्थूलहस्ता च या नारी दासीत्वमुपगच्छति ॥ २४ ॥
उंची, सिमटी हुई विरल अंगुलियों वाली, रोयें वालो तथा छोटे हाथों वाली औरत दासी होती है।
अश्वत्थपत्रसंकाशं भगं यस्या भवेत्सदा ।
सा कन्या राजपत्नीत्वं लभते नात्र संशयः ॥ २५ ॥
जिस स्त्री का जननेन्द्रिय पीपल के पत्ते के समान हो वह पटरानी पद को प्राप्त होती है - इसमें सन्देह नहीं ।
पृष्ठावर्ता च या नारी नाभिश्चापि विशेषतः
भगं चापि विनिर्दिष्टा प्रसवश्री विनिर्दिशेत् ॥ २६ ॥ (?) मण्डूककुक्षिका नारी न्यग्रोधपरिमण्डला ।
एकं जनयते पुत्रं सोऽपि राजा भविष्यति ॥ २७ ॥
मेढ़क के समान कोंख वाली तथा वर के पत्ते के समान मण्डल वाली स्त्री एक ही पुत्र पैदा करती हैं सोभी राजा ।
स्थूला यस्याः करांगुल्यः हस्तपादौ च कोमलौ । रक्तांगानि नखाश्चैव सा नारी सुखमेधते ॥ २८ ॥
जिस स्त्री के हाथ की अंगुलियाँ छोटी हों, हाथ पैर कोमल हों, शरीर और नख से खून झलकता हो वह स्त्री सुख पाती है।
. कृष्णजिह्वा च लंबोष्ठी पिंगलाक्षी खरस्वरा । दशमासैः पतिं हन्यात्तां नारी परिवर्जयेत् ॥ २६ ॥
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