________________
( १७ ) कृष्णा श्यामा च या नारी स्निग्धा चम्पकसंनिभा । स्निग्धचंदनसंयुक्ता सा नारी सुखमेधते ॥१०॥ कृष्णवर्ण की श्यामा स्त्रो (जो शीतकाल में उष्ण और उष्ण काल में शीत रहे) आवदार, चम्पा के समान वर्ण वाली, चन्दन गंध से युक्त हो वह सुख पाती है।
अल्पस्वेदाल्पनिद्रा च अल्परोमाल्पभोजना।
सुरूपं नेत्रगात्राणां स्त्रीणां लक्षणमुत्तमम् ॥११॥ पसीना का कम होना, थोड़ी मींद, थोड़े रोये, थोड़ा भोजन, नेत्रों तथा अन्य अंगों की सुन्दरता,-यह स्त्री का उत्तम लक्षण है।
स्निग्धकेशी विशालाक्षी सुलोमां च सुशोभनाम् ।
सुमुखीं सुप्रभां चापि तां कन्यां वरयेद् बुधः ॥१२॥ विकने केशों वाली, बड़ी आंखों वाली, सुन्दर लोम, मुख और कान्ति वाली सुन्दरी कन्या का वरण करना चाहिये।
यस्याः सरोमको पादौ उदरं च सरोमकम् ।
शीघ्र सा स्वपति हन्यात् तां कन्यां परिवर्जयेत् ॥१३॥ जिसके पैर रोंयेदार हों तथा पेट में भी रोंयें हों, वह स्त्री शीघ्र ही पति को मारती है, अतः इसका वरण नहीं करना ।
यस्या रोमचये जंधे सरोममुखमण्डलम् ।
शुष्कगात्री च तां नारी सर्वदा परिवर्जयेत् ॥१४॥ जिस स्त्री के जंघों और मुख मण्डल पर रोयं हो तथा शरीर सूखा हुआ हो उससे सदा दूर ही रहना चाहिये।
यस्याः प्रदेशिनी याति अंगुष्ठादतिवद्धि नी ।
दुष्कर्म कुरुते नित्यं विधवेयं भवेदिति ॥१५॥ जिस स्त्री के पैर के अंगूठे के पास वाली अंगुली अंगूठे से बड़ो हो वह नित्य हो दुराचार करती है और विधवा होती है।
यस्यास्त्वनामिका पादे पृथिव्यां न प्रतिष्ठते। पतिनाशो भवेत् क्षिप्र स्वयं तत्र विनश्यति ॥१६॥
Aho ! Shrutgyanam