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त्रिशंदन्ता नरा ये च ते भवन्ति सुभोगिनः ॥ ४५ ॥
एकोनत्रिंशद्दशनैः पुरुषाः दुःखजीविनः । ३२ दांतों वाला पुरुष राजा, ३१ दाँतों वाला सुखी, ३० दाँतों वाला भोगी और २६ दांतो वाला मनुष्य दुःखी होता है।
कृष्णा जिह्वा भवेद्य षां ते नरो दुःखजीविनः ॥ ४६॥ श्यामजिह्वो नरो यः स्यात्स भवेत् पापकारकः। स्थलजिह्वा प्रधातारो नराः परुषभाषिणः ॥४७॥ श्वेतजिह्वा नरा ये च शौचाचारसमन्विताः । पद्मपत्रसमा ये तु भोगवनमिष्टभोजनाः ॥ ४८ ॥ कालो जीभ वाले दुःखी, सांवली ( हल्की कालिमामयी ) जीभ वाले पापी, मोटी जीभ वाले परुष ( कड़ा ) बोलने वाले सफेद जीभ वाले पवित्र आचार शील, तथा कमल पत्र के समान चिकनी जीभ वाले मनुष्य मोगी तथा मिष्ट पदार्थ खाने वाले होते हैं।
किंचित्तानं तथा स्निग्धं रक्तं यस्य च दृश्यते ।
सर्वविद्यासु चातुर्य पुरुषस्य न संशयः ॥ ४६ ॥ जिसकी जीभ कुछ लालिमा के साथ चिकनाई भी लिये हो वह पुरुष निःसन्देह सब विद्याओं में चतुर होता है।
कृष्णतालुनरा ये च संभवं कुलनाशम् । पद्मपत्रसमं तालु स नरो भूपतिर्भवेत् ॥ ५० ॥ काले तालु वाला पुरुष कुल का नाशक तथा कमल-पत्र के समान तालु वाला राजा होता है।
श्वेततालुनरा ये च धनवंतो भवन्ति ते। जिन मनुष्यों का तालु सफेद रंग का होवे धनवान् होते हैं।
हयस्वरनरा ये च धनधान्यसुभोगिनः ॥५१॥ मेघगम्भीरनिर्घोषो मुंगाणां च विशेषतः । ते भवन्ति नरा नित्यं भोगवन्तो धनेश्वराः ॥५२॥
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