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( ११ )
कोष्ठाकारस्तथा राशिस्तोरणं यस्य दृश्यते ।
कृषिभोगी भवेत् सोऽयं पुरुषो नात्र संशयः ॥ ३२ ॥
जिसके हाथ में कोले का आकार, राशि, किंवा तोरण ( वन्दनवार ) का चिह्न हो वह पुरुष, निस्सन्देह, कृषिजीवी होता है।
दीर्घबाहुर्न योग्यः स सर्वगुणसंयुतः । अल्पबाहुर्भवेयोऽसौ परप्रेषणकारकः ॥३३॥
जिस पुरुष की बांहे लंबी हों वह योग्य तथा सर्वगुणसम्पन्न होता है इसी प्रकार छोटी बहुओं वाला दूसरे का नौकर होता है ।
वामावर्ती भुजो यस्य दीर्घायुष्यो भवेन्नरः । सम्पूर्ण बाहवश्चैव स नरो धनवान् भवेत् ॥ ३४ ॥
जिलको भुजायें वाई ओर घुमी हों वह पुरुष दीर्घ आयु वाला तथा धनो होता हैं। ग्रीवा तु वर्तुला यस्य कुंभाकारा सुशोभना ।
पार्थिवः स्यात् स विज्ञेयः पृथ्वीशो कान्तिसंयुतः ॥ ३५॥
जिसकी गर्दन घड़े की भांति गोल और सुन्दर हो वह सुन्दर स्वरूप वाला राजा होगा ऐसा जानना चाहिये ।
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शशग्रीवा नरा ये ते भवेयुर्भाग्यवर्जिताः ।
कम्बुग्रीवा नरा ये च ते नराः सुखजीविनः ॥ ३६॥
जिनकी गर्दन खरगोश कोसी होवे अभागे होते हैं और जिनकी गर्दन शंख जैसा हो वै मनुष्य सुखी होते हैं ।
कदलीस्तंभसदृशं गजस्कंधसुबन्धुरम् ।
राजानं तं विजानीयात् सामुद्रवचनं यथा ॥ ३७ ॥
जिसका कन्धा केले के खंभे की तरह अथवा हाथी के कन्धे की तरह भरा पूरा स्थूल हो वह राजा होगा ऐसा इस शास्त्र का वचन हैं ।
चन्द्रबिम्बसमं वक्त ं धर्मशीलं विनिर्दिशेत् । अश्ववक्त्रो नरो यस्तु दुःखदारिद्र्यभाजनम् ॥ ३८ ॥
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