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भुजाओं में, नेत्रो में, नखों में कानों में और नाक में दीर्घता होनी चाहिये। स्तनों में दीर्घता के साथ ही साथ कुछ ऊंचाई होनी चाहिये। इन्ही पांच अंगो की दीर्घता प्रशस्त बताई गई है।
ग्रोवा प्रजननं पृष्ठं हस्वजंघे प्रपूरिते।
हस्वानि यस्य चत्वारि पूज्यमाप्नोति नित्यशः ॥६॥ गर्दन पीठ और भरी हुई जंघा ये चार अंग जिसके ह्रस्व ( छोटे ) होते हैं वह सदा पूजा पाता है।
सूक्ष्मान्यंगुलिपर्वाणि दन्तकेशनखत्वचः ।
पञ्च सूक्ष्माणि येषां स्युस्तेनरा दीर्घजीविनः ॥७॥ अंगुलों के पोर, दाँत, पेश नख और त्वक् ( चमड़ा ) ये पाँचों जिन पुरुषों के सूक्ष्म ( बारीफ ) होते हैं वे दीर्घजीवी होते हैं।
कक्षः कुक्षिश्च वक्षश्च घ्राणस्कन्धौ ललाटकम् ।
सर्वभूतेषु निर्दिष्टं षडुन्नतशुभं विदुः ॥८॥ कक्ष ( कांख ), कुक्षि, ( कोस ) छाती, नाक, कन्धे और ललाट, इन छः अंगों का ऊंचा होना किसी भी जीव के लिये शुभ हैं।
पाणिपादतले रक्ते नेत्रान्तानि नखानि च ।
तालु जिह्वाधरोष्ठौ च सदा रक्तं प्रशस्यते ॥६॥ हथेली, चरणों के नीचे का भाग, नेत्रों के कोने, नख, तालु, जीभ और निवले होंठ इन सात अंगों का सदा लाल रहना उत्तम है।
नोभिस्वरं सत्तमिति प्रशस्त गंभीरमन्ते त्रितयं नराणाम् ।
उरोललाटोवदतं च पुंसां विस्तीर्णमेतत् त्रितयं प्रशस्तम्॥१०॥ नाभि, स्वर और सत्य ये तीन यदि पुरुषों के गम्भोर हों तो प्रशस्त कहे जाते हैं। इसी प्रकार छाती, ललाट और मुख का चौड़ा होना शुभ होता है।
वर्णात् परतरं स्नेहं स्नेहात्परतरं स्वरम् । स्वरात् परतरं सत्वं सर्व सत्त्वे प्रतिष्टिताम् ॥११॥
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