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मानप्रदीपिका। एते स्वक्षेत्रमुच्चं वो पश्यन्ति यदि केन्द्रकम् ॥३॥
त्रिचतुर्दिवसादन्तमहावृष्टिर्भविष्यति ।। यदि शुक्र बृहस्पति और चन्द्रमा अपने क्षेत्र को उच्च राशि को या दशम एकादश को देखते हों तो तीन ही चार दिनों के भीतर महावृष्टि होगी।
लग्नाच्चतुर्थे शुकः स्यात्त दिने वृष्टिरुत्तमा ॥४॥ चन्द्रे पृष्ठोदये जाते पृष्ठोदयमबोक्षिते ।
तत्काले परिवेषादिदृष्टे वृष्टिमहत्तरा ॥५॥ यदि ल से चतुर्थ में चन्द्रमा हो तो उसी दिन उत्तम वृष्टि होगी चन्द्रमा यदि पृष्ठोदय राशि में हो और पृष्ठोदय राशि को देखते हों और उस पर परिवेषादि उपग्रहों को दृष्टि हो तो वृष्टि अच्छी होगी।
केन्द्रषु मन्दभौमज्ञराहवो यदि संस्थिताः।
वृष्टिर्नास्तीति कथयेदथवा चण्डमारुतः ॥६॥ केन्द्र (१, ४, , १० ) में यदि शनि, मंगल, बुध और राहु स्थित हों तो बुष्टि न होगी या प्रचण्ड वायु पहेगी।
पापसौम्यविमिश्च अल्पवृष्टिः प्रजायते ।
पापश्चन्मन्दराहुश्चेत् वष्टिर्नास्तीति कीर्तयेत् ॥७॥ यदि उपर्युक्त स्थानों में पाप और शुभ दोनों प्रकार के ग्रह हों तो वृष्टि थोड़ो होगी यदि शनि और राहु हों तो वृष्टि नहीं होगी।
शुक्रकार्मुकसन्धिश्चेद्धारावृष्टिर्भविष्यति । यदि धनु में शुक्र पडे हों तो मूसलाधार पानो बरसेगा।
इति वृष्टिकाण्डः
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