________________
ज्ञानप्रदीपिका ।
सेना के आगमन के विषय में भी, जो शत्रु राजा समय समय पर आया करते हैं, कहता हूं-चर लग्न हो वर आरूढ़ हो और पाप ग्रह यदि पञ्चम स्थान में हों । सेनागमनमस्तीति कथयेत् शास्त्रवित्तमः । चतुष्पाददये जाते युग्मे रायुदये पिता (?) ||२||
तो शास्त्रज्ञ को सेना का आगमन बताना चाहिये । चतुष्पद राशि का उदय या युग्म राशि का उदय हो,
लग्नस्याधिपतौ वक सेना प्रतिनिवर्तते । चरोदये चरारूढे भौमार्किगुरवो रविः ||३||
और लग्नेश वक्र हो तो सेना लौट जायगी। यदि लग्न भी चर हो और चर हो और उसमें मंगल शनि और गुरु एवं सूर्य,
तिष्ठति यदि पश्यंति सेना याति महत्तरा । आरूढ़े स्वामिमित्रोच्चग्रहयुक्तेऽथ वीक्षिते ||४||
पढ़े हों या देखते हों तो बड़ी भारी सेना भी लौट जाती है। आरूढ़ यदि स्वामी, मित्र या उच्च ग्रह से युक्त हो अथवा दृष्ट हो,
स्थायिनो विजयं वयात यायिनो रोगमादिशेत् । ब्रूयात् एवं छत्रे विशेषोऽस्ति विपरीते जयो भवेत् ॥५॥
तो स्थायी की जीत होगी और यायी रोगाकान्त होगा । छत्र में भी यही विशेषता है। इसके विपरीत होने से यायी की जय होगी।
आरूढे बलसंयुक्ते स्थायी विजयमाप्नुयात् ।
यायी बलं समायाति छत्रे बलसमन्विते ॥६॥ .
आरूढ़ भी
आरूढ़ यदि बली हो तो स्थायी की और छत्र यदि बली हो तो यायी की जीत बतानी चाहिये ।
आरूढ नीचरिपुभिर्युक्तेऽथ वीक्षिते ।
स्थायी परगृहीतस्य छत्रेप्येवं विपर्यये ॥७॥
आरूढ़ यदि शत्रु नीच आदि ग्रहों से युक्त किंवा दृष्ट हो तो स्थायी दूसरे द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है। इससे उल्टा अर्थात् उच्च आदि ग्रहों से यदि छत्र युक्त दृष्ट हो तो भी यही फल होता हैं।
Aho! Shrutgyanam