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शानप्रदीपिका।
चतुर्थ, तृतीय, पंचम या सप्तम भाव में यदि चंद्र शुक्र योग हो तो स्वस्त्री से कलह बताना चाहिये।
तदीयवसनच्छे (2) कलहं परिकोर्तयेत् । सप्तमे पापसंयुक्ते दशमे भौमसंयुते ॥२०॥
तृतीये बुधसंयुक्ते स्त्रीविवादस्थले शयः । .... सप्तम में पाप ग्रह हो दशम में मंगल तथा तृतीय में बुध हो ( चन्द्रमा युत दृष्ट हो तो ) स्त्री से विवादपूर्वक भूशयन बताना ।
लग्ने चन्द्रयुते भौमे द्वितीयस्थे तथा यदि ॥२१॥ जागरश्चोरभीत्या च राशिनक्षत्रसंधिषु ।
पृष्ठश्चेद्विधवाभोगः संकटादिति कीतयेत् ॥२२॥ लग्न में या द्वितीय में यदि मंगल और चंद्र का योग हो तो जागरण चोर के डर आदि से संकटपूर्वक विधवा से रति बताना। यह फल राशिसंधि और नक्षत्रसंधि में भी घटेगा।
तत्संधी शुक्रसौम्यौ चेत् तत्तज्ज्ञातिपतिं वदेत् ।
यत्र कुत्रापि शशिनं पापाः पश्यन्ति चेत्तथा ॥२३॥ राशि संधि नक्षत्र संधि में शुक्र या चंद्र हो तो स्वजातीय स्त्री से रति तथा
नपंसो (१) सेव्यति (2) वधूः शुभश्चेत्पुरुषप्रिया। सात्विकाश्चन्द्रजीवार्का राजसौ भृगुसोमजौ ॥२४॥
तामसौ शनिभूपुत्री एवं स्त्रीपुंगणाः स्मृताः॥२५॥ कहीं पर स्थित चन्द्रमा को यदि पापग्रह देखते हों तो स्त्रो पति की सेवा नहीं करती। चंद्र, बृहस्पति सूर्य ये सत्वगुणी शुक्र, बुध रजोगुणी, शनि, मंगल तमोगुणी है। स्त्री पुरूष का गुण इन्हीं के बलाबल से विचार लेना चाहिये।
इति कामकाण्डः
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