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ज्ञानप्रदीपिका। प्रदेशे तस्य लग्नस्य लग्ने वा पापसंयुते।।
खड्गस्यादावृणं ब्रूयात् त्रिकोणे पापसंयुते ॥५॥ (इस श्लोक के चौथे चरण का अर्थ नीचे के श्लोक की टोका में सम्मिलित है ) लग्न में यदि पाप हों तो तलवार के प्रारंभ में ऋण लेना पड़ा होगा।
तस्करो भंगतो व्योम्नि चतुर्थे पापसंयुते।
खड्गस्य भंगो मध्ये स्यादिति ज्ञात्वा वदेत्सुधीः॥६॥ यदि त्रिकोण ( १, ५, ६ ) पाप युत हों तो चोरी हो जाती है,...."चतुर्थ में पापग्रह हों तो लड़ाई के बीच में ही तलवार के टूटने की संभावना रहती है।
एकादशे तृतीये च पापे शस्त्रस्य भंजनम् ।
मित्रस्वाम्युच्चनीचादिवर्गेनादि (?) गताः ग्रहाः ॥७॥ एादश और तृतीय में यदि पाप ग्रह हो तो शस्त्र टूट जायगा। मित्र, स्वामी, उच्च, नीच आदि वर्गों में गत ग्रह
तत्तद्वर्गस्थलायां तु शस्त्रमित्यभिधीयते ।
संमुखे यदि खगः स्यात्तत्तीर्यग्ग्रहमुच्यते ॥८॥ उन उन वर्गों के स्थल के सम्मुख शत्रपात का भय करते हैं, यदि सन्मुख में तिर्यप्रह हों तो स्वङ्गपात का भय करते हैं।
तिर्यग्मुखश्चत्त छत्रं अन्यशस्त्र वदेत्सुधीः ।
अधोमुखश्चत्संग्रामे च्युतमाहृतमुच्यते ॥६॥ तिर्यग् मुख्न की राशि हो बहुत चोटीला (?) हथियार है, यदि अधोमुख राशि हो तो संग्राम में वह पुरुष मारा जायगा ऐसा उपदेश करना चाहिये ।
तत्तच्चेष्टानुरूपेण तस्य नै मरणं स्मृतम् । उनकी चेष्टा के अनुरूप उस पुरुष का संग्राम में मरण अथवा जय पराजय का निर्देश करना।
इति क्षुरिका काण्डः
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