________________
सं.टी.-गुणान्नाद्युगणात् त्रिभिर्गुणिताद् दिनगणाद् दशाप्तो दशभिर्भक्तश्च पुनर्दिनगणाद् वेदान्धिभिर्लब्धविवर्जितः (शास्त्रब्दागतध्रुव के युक्तः) गुरुर्भवति ॥
भा० टी०-दिनगण को ३ से गुणि दश का भाग देने से जो लब्ध मिलै उसको एक जगह धरि देवे, फिर दिन गण में ४४ का भाग देने से जो लब्ध मिलै उसको पहिले के लब्ध में घटा कर बृहस्पति के ध्रुवा में युक्त करने से मध्यमगुरु होता है ॥ उदाहरण - दिनगण २७ को ३ से गुणा तो ८१ हुए इसमें १० का भाग दिया तो लब्ध ८ । ६ । ० मिले, फिर दिन गण २७ में ४४ का भाग दिया तो लब्ध ० । ३६ । ४९ मिले, इसको पूर्व के लब्ध ८ । ६ । ० में घटाया तो १ । २९ । ११ । बचे इसको बृहस्पति के ध्रुवा ६६४ । ४९ । २० में युक्त किया तो मध्यम गुरु ६७२ । १८ । ३१ । हुआ ।।
गुरु दिनगण सारणीयम् । एकाद्यङ्कानि ( एकाई ) ।
१.
महस्वष्टाधिकारः ।
मध्यमगुरुविधिः
गुरुर्गुणम्नायुगणाद्दशातो वेदाधिभिर्लब्ध विवर्जितश्च ।
O
०
M
O
४
१
६
१६ | ३३
५९
३८ १६ ५४ ३२
५
१
૩
६ ७ ८
mo
or set 9
१
३९
११ ४९ ६७
५६ | १३ | २९
5
२
Aho! Shrutgyanam
%
४३
दिनगण.
श
कला
विकला